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जयवलासहिदे कसा पाहुडे
[ पयडिविहती २
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मोहिदंस०- सम्मादि० - बेदय ० - उवसम० वत्तव्यं । संजदासंजद अध्य० के० खेतं फोसिदं ? लोग असंखे० भागो । अवहि० लोग० असंखे ० भागो, छ चोहस० देखणा । तेउ० सोहम्मभंगो । पम्म० सणक्कुमारभंगो । सुक्क० आणदभंगो । खइय० अप्प खेत्तभंगो | अवडि० लोग० असंखे० भागो, अड चोदस० देखणा । सम्मामि० अवट्टि ० के ० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, अह चोहस० देगा | सासण० श्रवट्टि • लोग असंखे० भागो, श्रह - बारह चोदस० देखणा । णाहारि० कम्मइय भंगो । एवं फोसणाणुगमो समत्तो ।
९४६०. कालानुगमेण दुविहो णिद्देसो, ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओषेण भुज ० अप्प के ? जह० एगसमओ उक्क० आवलियाए असंखे० भागो । अवद्वि० के० १ सव्वद्ध। । एवं सव्वणिरयतिरिक्ख पंचि०तिरिकखतिय देव भवणादि जाव उवरिगे - और उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों में कहना चाहिये । संयतासंयतों में अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और चौदह राजुमें से कुछ कम छह भागमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है ।
तेजोलेश्यामें सौधर्म स्वर्गके समान, पद्मलेश्या में सानत्कुमार स्वर्गके समान और शुक्ललेश्या में आनत स्वर्गके समान स्पर्श जानना चाहिये । क्षायिक सम्यग्दृष्टियों में अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श उनके क्षेत्रके समान है । तथा अवस्थित विभकिस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । सासादनसम्यदृष्टियों में अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भाग और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अनाहारक जीवोंमें कार्मणकाययोगियोंके समान जानना चाहिये ।
इसप्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ ।
S ४६०. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघनिर्देशकी अपेक्षा भुजगार और अल्पतरविभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? सर्वकाल है । इसी प्रकार सभी नारकी, सामान्य तिथंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच, पंचेन्द्रिय पर्याप्त वियंच पंचेन्द्रिययोनीमती तियंच, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर उपरिम मैवेयक तकके देव
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