Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 437
________________ ४१२ tradariहिदे कला पाहुडे [ पयडिविहती २ वा । अवद्वि० के० खेत फोसिदं ? सव्वलोगो । एवं बादरेइंदिय- बादरेइंदियपअ ०सुडुमेईदिय सुडुमेइंदियपञ्ज सुहुमेदि ० ० बादरेइंदियअप अपज • - पुढवि बादरपुढवि० - बादरपुढवि० अपअसुहुमपुढवि० सुहुम पुढविपअत्ताप अत- आउ०बादर आउ०- बादरआउ० अपज० - सुहुम आउ० - मुहुम आउ० पअत्तापअ च ते उ० - बादरउ०- वादरतेउ० अपज० - सुहुमते उ०- सुहुमते उ० पत्ता पत्ताणं वतव्वं । बादरपुढवि ० पज० - बादर आउ० प० - बादरते उपजताणं अप्पदर - अवद्विदविहत्तिएहि के० खेतं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, सव्वलोगो वा । वाउ०- बादरवाउ०- बादर बाउअपअं ० - सुहुमवाउ०- सुहुमवा० पज्जतापजत्त-ओरालियमिस्स० असण्णीणमेइंदियभंगो । वादरवाउ० पञ्ज० अप्पद • लोग • असंखे० भागो, सव्वलोगो वा । अवहि० के० खे फोसिदं ? लोगस्स संखे ० भागो, सव्वलोगो वा । O ४५. पंचिदिय-पंचिदियपज-तस तसपज० भुज० अप्प० ओघभंगो । अवट्टिο है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । तथा अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र का स्पर्श किया है। इसीप्रकार बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त, अष्कायिक, बादर अष्कायिक, बांदर अकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अकायिक, सूक्ष्म अष्कायिक पर्याप्त, सूक्ष्म अष्कायिक अपर्याप्त, अग्निकायिक, बादर अभिकायिक, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अमिकायिक पर्याप्त और सूक्ष्म अभिकायिक अपर्याप्त जीवों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श कहना चाहिये । बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त और बादर कायिक पर्याप्त जीवोंमें अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । बायुकायिक, बादर बायुकायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त, औदारिक मिश्रकाय योगी और असंज्ञी जीवोंका स्पर्श एकेन्द्रियोंके समान है । बादर वायुकायिक पर्याप्तकों में अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकक्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा उनमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके संख्यातवें भाग और सर्व लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है $ २५, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, त्रस और स पर्याप्त जीवों में भुजगार और अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीमोंका स्पर्श ओषके समान है। तथा उक्त चारों प्रकार के Jain Education International 0 For Private & Personal Use Only 11 www.jainelibrary.org

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