Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे .
[पयडिविहत्ती २
६१६३.विदियादि जाव सत्तमीए सव्वत्थोवा अणंताणु० चउक्क० अविह० । सम्मल विह० असंखेज्जगुणा । सम्मामि विह विसेसा० । तस्सेव अविह० असंखे० गुणा । सम्मत्त. अविह० विसे । अणताणु० चउक्क० विहत्ति विसेसा० । वावीसंपयडीणं विह० विसेसा० । एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-भवण-वाण-जोदिसि० वत्तव्वं । - ६१६४.तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा मिच्छत्त अविह० ।अणंताणु० चउक०अविह असंखेजगुणा । सम्मत्तविह० असंखेज्जगुणा । सम्मामि० विह. विसे० । तस्सेव अविह० अणंतगुणा । सम्मत्तअविह० विसे० । अणंताणुबंधीचउक्कविह० विसेसा० । मिच्छत्तविह० विसेसा० । बारसक०-णवणोकसाय०वि० विसे० । एवमसंजद-किण्ण-णील-काउ
लेस्सा । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० सव्वत्थोवा सम्मत्त विहत्तिया। सम्मामि विह० विसेसा० । तस्सेव अविह० असंखेज्जगुणा । सम्मत्त० अविह० विसे । मिच्छत्त-सोल
६१९३. दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले नारकी जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले नारकी जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले नारकी जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले नारकी जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले नारकी जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले नारकी जीव विशेष अधिक हैं। इनसे बाईस प्रकृतियोंकी विभक्तिवाले नारकी जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तियंच योनीमती, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके कहना चाहिये।
१९४.तिर्यचोंमें मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले तिर्यच जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले तिर्यच जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले तिर्यंच जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले तिर्यंच जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले तिर्यच जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले तिथंच जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विभक्तिवाले तिर्यंच जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले तिर्यच जीव विशेष अधिक हैं। इनसे बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले तिर्यच जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार असंयत, कृष्णलेश्यावाले, नील- .. लेश्यावाले और कपोतलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिये ।। . पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव सवसे थोड़े हैं। इनसे सम्यग्मिध्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिधाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष
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