Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयपवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ ६१६७. इंदियाणुवादेण एइंदिएसु सव्वत्थोवा सम्मत्त विह० । सम्मामि० विह० विसे। तस्सेव अविह० अणंतगुणा। सम्मत्त अविह विसे । मिच्छत्त-सोलसक०-णवणोक० विह० विसे० । एवं बादर-सुहुम-एइंदिय-तेसिं पज्जत्तापज्जत्त-वणप्फदि०-णिगोद०बादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्त-मदि-सुदअण्णाण-मिच्छाइटि-असण्णि त्ति वत्तव्वं ।
६१६८.पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्त-तस-तसपज्जत्तः सव्वत्थोवा लोभसंजल० अविह। मायासंजल० अविह० विसे । माणसंज. अविह० विसे । कोधसंजल० अविह० विसे । पुरिस० अविह. विसे । छण्णोकसाय० अविह० विसे । इत्थि० अविह. विसे०। णवंस अविह० विसे० । अष्टक० अविह० विसे । मिच्छत्त० अवि० असंखेजगुणा। अणंताणु०चउक्क० अविह० असंखेजगुणा । सम्मत्त विह० असंखेजगुणा । सम्मामि० विह० विसे । तस्सेव अविह० असंखेजगुणा । सम्मत्त० अविह० विसे० । अणंताणु
१९७.इन्द्रिय मार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियोंमें सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे सम्यक्प्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रिय तथा इनके पर्याप्त
और अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, निगोद, बादर वनस्पतिकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक बादर बनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तं, बादर निगोद, सूक्ष्म निगोद, बादर निगोद पर्याप्त, बादर निगोद अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके कहना चाहिये ।
६१६८.पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रस पर्याप्त जीवोंमें लोभसंज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे माया संज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मान संज्वलनकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे क्रोधसंज्वलनकी अविभाक्तवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे पुरुषवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे छह नोकषायोंकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे स्त्रीवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे नपुंसकवेदकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं । इनसे आठ कषायोंकी अविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे मिथ्यात्वकी अविभाक्तवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे सम्यक्प्रकृतिकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यग्मिथ्यात्वकी विभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे सम्यग्मिध्यात्वकी अविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे सम्यकप्रकृतिकी अविभक्तिवाले जीव विशेष
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