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गा० २२ ]
पट्ठाण हित्ती कालागुगमो
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परिहार • तेवीस-बावीस ० के० ? जहण्णुक्क० अंतोमु० । सेसपदाणं सव्वद्धा । असंजद० अट्ठावीस - सत्तावीस छव्वीस - चउवीस- एक्कवीस० के० १ सव्वद्धा । तेवीस -वावीस० जहण्णुक्क० अंतोमु० । णवरि वावीस० जह० एगसमओ । एवं किण्ह णील०, णवरि तेवीस-बावीस ० णत्थि । काउ० असंजदभंगो । णवरि तेवीसं णत्थि । तेउ पम्म० अट्ठावीस सत्तावीस-छब्वीस-चउवीस-एकवीस० के० ? सव्वद्धा । तेवीस - वावीस ० जह० अंतोमु० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० | सुकलेस्सा० मणुसभंगो । णवरि वावीस ० जह० एयसमओ |
विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय होता है पर मन:पर्ययज्ञानी जीवोंके नपुंसकवेद और स्त्रीवेदका उदय नहीं पाया जाता । अतः मनः पर्ययज्ञान में बारह विभक्तिस्थानके जघन्यकाल एक समयका निषेध किया है। शेष कथन सुगम है ।
परिहारविशुद्धिसंयतों में तेईस और बाईस विभक्ति स्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । तथा शेष पदका सर्वकाल है । असंयतोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबास और इक्कीस विभक्तिस्थान वाले जीवोंका काल कितना है ? सर्व काल है । तथा तेईस और बाईस विभक्तिस्थानवालोंका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि बाईस विभक्तिस्थानवालोंका जघन्य काल एक समय है । इसोप्रकार कृष्ण और नील लेश्यावाले जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन दोनों लेश्यावाले जीवोंके तेईस और वाईस विभक्तिस्थान नहीं पाये जाते हैं । कापोत लेश्यावाले जीवोंके विभक्तिस्थानों की अपेक्षा काल असंयतोंके कालके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके तेईस विभक्तिस्थान नहीं पाया जाता है । पीत और पद्म लेश्यावाले जीवोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? सर्व काल है । तथा तेईस और बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्यकाल क्रमशः अन्तर्मुहूर्त और एक समय है । तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । शुक्ललेश्यावाले जीवोंके मनुष्योंके समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्यकाल एक समय है ।
विशेषार्थ - बाईस विभक्तिस्थानवाले संयत या संयतासंयत जीवोंके मर कर असंयत होने पर यदि उनके बाईस विभक्तिस्थानका काल एक समय शेष रहता है तो असंयतों के बाईस विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है । शुभलेश्यावाले जीवोंके ही दर्शनमोहनी की क्षपणा होती है । अब यदि कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि हो जाने पर लेश्या में परिवर्तन हो तो कारण विशेषसे कापोत लेश्या तक प्राप्त हो सकती है अतः कृष्ण और नील लेश्यामें २३ और २२ विभक्तिस्थान तथा कापोत लेश्यामें २३ विभक्तिस्थान नहीं
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