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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ गुण दट्ठण तथा अपरूवणादो । ण च तकालस्स संखेज्जगुणत्तमसिद्धं, कोध-अस्सकण्णकरणकालं कोध-किट्टीकरणकालं कोधतिण्णिसंगहकिट्टीवेदयकालं च घेत्तण चउण्हं विहाचियाणमद्धाए अवष्ठाणादो। णेदमेत्थासंकणिज्ज सोदएण चडिदस्स तिण्हं दोण्ह मेकिस्से विहतियकालो वि एक्कारसविहत्तियकालादो संखेज्जगुणो लब्भइ तदो तेहि. म्मि एकारसविहत्तिएहितो संखेज्जगुणेहि होदव्वामिदि । किं कारण ? कोहोदएण खवगसेटिं चडंताणमेव सव्वत्थ पहाणभावोवलंभादो। तदो ण किंचि विरुज्झदे ।
* बारसण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया।
६३६७. कुदो १ छण्णोकसायखवणकालादो इत्थिवेदखवणकालस्स संखेजावलिविभक्तिस्थानवाले जीवोंका कथन नहीं किया है।
तीन विभक्तिस्थानके कालसे चार विभक्तिस्थानका काल संख्यातगुणा है यह बात असिद्ध नहीं है, क्योंकि क्रोधके अश्वकर्णकरणका काल, क्रोधको कृष्टिकरणका काल और क्रोधकी तीन संग्रहकृष्टियोंका वेदककाल इन तीनोंको मिलाकर चार विभक्ति- . स्थानका काल होता है।
यहां पर ऐसी आशंका भी नहीं करना चाहिये कि स्वोदयसे चढ़े हुए जीवके तीन, दो और एक विभक्तिस्थानका काल भी ग्यारह विभक्तिस्थानके कालसे संख्यातगुणा पाया जाता है इसलिये तीन, दो और एक विभक्तिस्थानवाले जीव भी ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे संख्यातगुणे होने चाहिये। इसका कारण यह है कि क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणोपर चढ़े हुए जीवोंकी ही सर्वत्र प्रधानता देखी जाती है, इसलिये पूर्वोक्त कथनमें कोई विरोध नहीं आता है । तात्पर्य यह है कि यद्यपि मानके उदयसे चढ़े हुए जीवोंके दो विभक्तिस्थानका काल, मायाके उदयसे चढ़े हुए जीवोंके तीन विभक्तिस्थानका काल और लोभके उदयसे चढ़े हुए जीवोंके एक विभक्तिस्थानका काल ग्यारह विभक्तिस्थानके कालसे संख्यातगुणा होगा। पर मान, माया और लोभके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले जीव बहुत थोड़े होते हैं । अतः एक, दो और तीन विभक्तिस्थानवाले जीव ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंके संख्यातगुणे न होकर कम ही होते हैं। ___ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे बारह विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। ___$३९७.शंका-ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे बारह विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक क्यों हैं ?
समाधान-क्योंकि छह नोकषायोंके क्षपणकालसे स्त्रीवेदका क्षपणाकाल संख्यात श्रावली अधिक पाया जाता है । अतः ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे बारह विभक्तिस्थान . बाले जीव विशेष अधिक हैं।
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