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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ * दोण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसा० ।
६३९४. कुदो ? लोभतिण्णिकिट्टीवेदयकालसंचिदजीवेहिंतो मायाए तिण्णिसंगहकिट्टीवेदयकालेण लोभतिणिसंगहकिट्टीवेदयकालादो विसेसाहिएण संचिदजीवाणं पि विसेसाहियत्तदंसणादो । ण च विसेसाहियदंसणमसिद्धं पुन्विल्लकालादो अहियसंखेजावलियासु सिद्धासिद्धसमएहि करंबियासु संचिदजीवोपलंभादो।
* तिण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया ।। - ३६५. क्रुदो ? मायातिण्णिसंगहकिट्टीवेदयकालसंचिंदजीवेहितो माणतिण्णिसंगहाहीवेदयकालेण मायातिण्णिसंगहाकट्टीवेदयकालादो विसेसाहिएण संचिदजीवाणं विसेसाहियत्तुवलंभादो। ण च संचयकाले विसेसाहिए संते जीवसंचओ सरिसो, विरोहादो।
* एक विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे दो विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं।
६३९४. शंका-एक विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे दो विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक क्यों हैं ?
समाधान-जब कि लोभकी तीन संग्रहकृष्टिके वेदककालसे मायाकी तीन संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है, तब लोभकी तीन संग्रहकृष्टिके वेदककालमें जितने जीवोंका संचय होता है, उससे मायाकी तीन संग्रहकृष्टिके वेदककालमें जीवोंका संचय भी विशेष अधिक ही देखा जाता है। और यह विशेष अधिक जीवोंका पाया जाना असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि एक विभक्तिस्थानके कालसे दो विभक्तिस्थानका काल संख्यात आवलि प्रमाण होते हुए भी विशेष अधिक है, और उन संख्यात आवलियोंमें, जिनमें कि सिद्ध समय और असिद्ध समय, दोनों पाये जाते हैं, जीव संचित होते हैं। अतः दो विभक्तिस्थानका काल बहुत होनेसे उसमें संचित होने वाले जीव भी बहुत हैं।
* दो विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे तीन विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। ६३१५. शंका-दो विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे तीन विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक क्यों हैं ?
समाधान-मायाकी तीन संग्रहकृष्टिके वेदककालसे मानकी तीन संग्रहकृष्टियोंका वेदककाल विशेष अधिक है, अतः मायाकी तीन संग्रहकृष्टियोंक वेदककालमें जितने जीवोंका संचय होता है उससे मानकी तीन संग्रहकृष्टियोंके वेदककालमें साधिक जीवोंका संचय पाया जाता है । यदि कहा जाय कि दो विभक्तिस्थानवाले जीवोंके संचय कालसे तीन विभक्तिस्थानवाले जीवोंका संचयकाल विशेष अधिक भले ही पाया जाय पर दोनों विभक्तिस्थानोंमें जीवोंका संचय समान ही होता है सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेमें विरोध आता है।
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