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गा० २२) पपडिट्ठाणविहत्तीए अप्पाबहुप्राणुगमो
३६७ थीणगिद्धियादि सोलसकम्मक्खवणकालो १, मणपज्जव-दाणंतराइयाणं देसघादीबंधकरणकालो २, ओहिणाण-ओ हदंस-लाहंतराइयाणं देसघादिबंधकरणकालो ३, सुदणाण-अचक्खु०-भोगंतराइयाणं देसघादिबंधकरणकालो ४, चक्खुदंस० देसपादिबंधकरणकालो ५, आभिणि०-परिभोग० देसघादिबंधकरणकालो ६, विरियंतराइयदेसधादिबंधकरणकालो ७, तेरसण्ह कम्माणमंतरकरणकालो ८, णवंसयवेदक्खवणकालो ६, एदे णव काला । चदुण्हं विहत्तियकाला पुण तिण्णि चेव । तेण एदे पेक्खियूण पुबिल्लकाला संखेजगुणा । किंच सोलसकम्माणि खविय जाव मणपजवणाणावरणीयं बंधेण देसघादि ण करेदि ताव से कालो चेव चउण्हं विइत्तियकालादो संखेजगुणो संखेजहिदिबंधसहस्सगब्भिणत्तादो। सव्वकालसमूहो पुण संखेजगुणो ति को संदेहो ? पुब्बिल्लकालअप्पाबहुगादो वा तेरसविहत्तियकालस्स संखेज्जगुणत्तं णव्वदे। है अर्थात् इन चार कालोंमें नौ काल सम्मिलित है । अतः वे चार विभक्तिस्थानसंबन्धी तीन कालोंसे विशेषाधिक नहीं हो सकते ।
शंका-वे नौ काल कौनसे हैं ?
समाधान-पहला स्त्यानगृद्धि आदि सोलह कर्मोंका क्षपणकाल, दूसरा मन:पर्यय और दानान्तराय इन दो प्रकृतियोंका देशघातिबन्धकरणकाल, तीसरा अवधिज्ञानावरण अवधिदर्शनावरण और लाभान्तराय इन तीन प्रकृतियोंका देशघातीबन्धकरणकाल, चौथा श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण, और भोगान्तराय इन तीन प्रकृतियोंका देशघातिबन्धकरणकाल, पांचवा चक्षुदर्शनावरण प्रकृतिका देशघातिबन्धकरणकाल, छठा मतिज्ञानावरण परिभोगान्तराय इन दो प्रकृतियोंका देशघातीबन्धकरणकाल, सातवां वीर्यान्तराय प्रकृतिका देशघातिबन्धकरणकाल, आठवां मोहनीयकी तेरह प्रकृतियोंका अन्तरकरण काल और नौवां नपुंसकवेदका क्षपणकाल इसप्रकार ये नौ काल हैं, पर चार विभक्तिस्थानके काल तीन ही होते हैं। इससे इन दोनों कालोंको देखते हुए ज्ञात होता है कि चार विभक्तिस्थानसंबन्धी कालोंसे तेरह विभक्तिस्थानसंबन्धी काल संख्यातगुणे हैं । दूसरे स्त्यानगृद्धि आदि सोलह कर्मोंका क्षय करके तेरह विभक्तिस्थानवाला जीव जब तक मन:पर्ययज्ञानावरणीय कर्मके बन्धको देशघाति नहीं करता है तब तक जो काल होता है वही चारविभक्तिस्थानके कालसे संख्यातगुणा होता है, क्योंकि मनःपर्ययज्ञानावरणीय कर्मके देशघाति बन्धकरण संबन्धी कालके भीतर संख्यात हजार स्थितिबन्ध गर्भित हैं। अतएव तेरह विभक्तिस्थानका समस्त काल मिलकर चार विभक्तिस्थानके कालसे संख्यातगुणा है इसमें क्या सन्देह है। अथवा, पहले जो कालविषयक अल्पबहुत्व कह आये हैं उससे जाना जाता है कि चार विभक्तिस्थानके कालसे तेरह विभक्तिस्थानका काल संख्यातगणा है।
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