Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 412
________________ गा० २२) भुजगारविहचीए कालो ३८७ जहाक्खाद०-सासण-सम्मामि०वत्तव्वं । अवगद० अप्पदरं कस्स ? खवयस्स । अवद्विदं कस्स ? अण्ण. उवसामयस्स खवयस्स वा। आभिणि-सुद०-ओहि०मणपज्ज० अप्पदरं कस्स ? अण्ण० । अवष्टिदं कस्स ? अण्ण० । एवं संजदासंजदसामाइय-छेदो०-परिहार ०-संजद-ओहिदंस०-सम्मादि०-वेदय-उवसम० वत्तव्वं । सुहुमसांपराइय. अवष्ठिदं कस्स ? अण्णदर० उवसामयस्स खवयस्स वा । अब्भवसि० अवडिदं कस्स ? अण्णद० । खइयसम्माइहि० अप्पदरं कस्स ? खवयस्स । अवछिद० कस्स ? अण्ण । ___ एवं सामित्तं समत्तं । * एत्थ एगजीवेण कालो। ६४२२. समुक्तित्तणं सामित्तं सेसाणिओगद्दाराणि च अभणिदण कालाणिओग. चेव भणंतस्स जइवसह-भयवंतस्स को अहिप्पाओ ? कालाणिओगद्दारे अवगए संते दृष्टि जीवोंके कथन करना चाहिये । - अपगतवेदी जीवोंमें अल्पतर विभक्तिस्थान किसके होता है ? क्षपक अपगतबेदीके होता है। अवस्थित विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी उपशामक या क्षपक अपगतवेदी जीवके होता है। ___मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें अल्पतर विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी मतिज्ञानी आदि जीवके होता है। उक्त चार ज्ञानवाले जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी.मतिज्ञानी आदि जीवके होता है। इसीप्रकार संयतासंयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयत, अबधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टिके कहना चाहिये। सूक्ष्मसांपरायिकसंयतोंमें अवस्थित विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी उपशामक या क्षपक सूक्ष्मसांपरायिकसंयत जीवके होता है। अभव्योंमें अवस्थित विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी अभव्यके होता है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में अल्पतर विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी क्षपक क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवके होता है। अवस्थित विभक्तिस्थान किसके होता है ? किसी भी क्षायिकसम्यग्दृष्टिक होता है। इसप्रकार खामित्वानुयोगद्वार समाप्त हुआ। * अब एक जीवकी अपेक्षा कालका कथन करते हैं। $ ४२२. शंका-यतिवृषभ आचार्यने समुत्कीर्तना, स्वामित्व और शेष अनुयोगद्वारोंका कथन न करके केवल कालानुयोगद्वारका कथन किया, सो इससे उनका क्या अभिप्राय है? समाधान-कालानुयोगद्वारके ज्ञात हो जानेपर बुद्धिमान शिष्य दूसरे अनुयोगद्वारोंको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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