Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 415
________________ ३६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ केसि पि अणादिओ सपञ्जवसिदो, अणादिसरूवेण छव्वीसपयडीसंतम्मि अच्छिय सम्मत्तमुवगयजीवम्मि अवठाणस्स अणादिसणिहणत्तदंसणादो। केसि पि सादिसपज्जवसिदो। * तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जह• एगसमओ। ६४२७. कुदो ? अंतरकरणं करिय मिच्छत्तपढमहिदिदुचरिमसमयम्मि सम्मत्तमुव्वेलिय अप्पदरं काऊण तदो मिच्छादिष्टिचरिमसमयम्मि एगसमयमवहाणं काऊण तदियसमए सम्मत्तं पडिवण्णजीवम्मि अप्पदरभुजगाराणं मज्झे अवट्टिदस्स एगसमयकालुवलंभादो। ___* उक्कस्सेण उवट्ठपोग्गलपरियद । अवस्थित विभक्तिस्थान अनादि-सान्त होता है, क्योंकि जिस जीवके अनादि कालसे छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्ता है उसके सम्यक्त्वको प्राप्त होनेपर अवस्थित विभक्तिस्थान अनादि-सान्त देखा जाता है। किन्हीं जीवोंके अवस्थित विभक्तिस्थान सादि-सान्त होता है। * इन तीनोंमेंसे जो अवस्थित विभक्तिस्थानका सादि-सान्त भंग है उसका जघन्यकाल एक समय है। ४२७. शंका-इसका जघन्यकाल एक समय कैसे है ? समाधान-जो जीव अन्तरकरण करनेके अनन्तर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके द्विचरम समयमें सम्यक्त्वकी उद्वेलना करके अट्ठाईस विभक्तिस्थानसे सत्ताईस विभक्तिस्थानको प्राप्त होकर एक समय तक अल्पतर विभक्तिस्थानवाला होता है। अनन्तर मिध्यादृष्टि गुणस्थानके अन्तिम समयमें सत्ताईस विभक्तिस्थानरूपसे एक समय तक अवस्थित रहकर मिथ्यात्वके उपान्त्य समयसे तीसरे समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त होकर अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाला होता है उसके अल्पतर और भुजगारके मध्यमें अवस्थितका जघन्यकाल एक समय देखा जाता है। विशेषार्थ-यहां अवस्थित विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय बतलाते समय मिथ्यात्वगुणस्थानके अन्तके दो समय और उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुए सम्यग्दृष्टिका पहला समय, इसप्रकार ये तीन समय लेना चाहिये। इनमेंसे पहले समयमें सम्यक्त्वकी उद्वेलना कराके सत्ताईस विभक्तिस्थान प्राप्त करावे, दूसरे समयमें तदवस्थ रहने दे और तीसरे समयमें उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण कराके अट्ठाईस विभक्तिस्थानको प्राप्त करावे । तब जाकर अल्पतर और भुजगार विभक्तिस्थानके मध्य में अवस्थितविभक्तिका जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है। इसीप्रकार सम्यग्मिध्यात्वकी उद्वेलनाकी अपेक्षा भी अवस्थितका एक समय काल प्राप्त किया जा सकता है । ... * अवस्थित विभक्तिस्थानका उपापुद्गल परिवर्तनप्रमाण उत्कृष्टकाल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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