Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 413
________________ १५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिषिहत्ती २ सेसाणिओगद्दाराणि बुद्धिमंतेहि सिस्सेहि अवगंतुं सकिजंति, सेसाणिओगद्दाराणं काल- . जोणित्तादो, तेण कालाणुओगदारं चेव परूवेमि त्ति एदेण अहिप्पाएण एत्थ एगजीवेण कालो त्ति भणिदं । (* भुजगार-संतकम्मविहत्तिओ केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुकस्सेण एगसमओ।) ६४२३. कुदो १ छव्वीसविहत्तिएण सत्तावीसविहत्तिएण वा सम्मत्ते गहिदे जहण्णुकस्सेण भुजगारस्स एगसमयमेत्तकालुवलंभादो को भुजगारो णाम ? अप्पदरपयडिसंतादो बहुदरपयडिसंतपडिवजणं भुजगारो) चउवीससंतकम्मियसम्मादिष्टिम्मिमिच्छतमुवगदम्मि वि भुजगारस्सेगसमओ लब्भइ, चउवीससंतादो अहावीससंतमुवगयस्स पयडिवड्ढिदसणादो। * अप्पदर-संतकम्मविहत्तिओ केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमओ। जान सकते हैं, क्योंकि शेष अनुयोगद्वारोंका काल अनुयोगद्वार योनि है। इसलिये 'मैं ( यतिवृषभ आचार्य) कालानुयोगद्वारका ही कथन करता हूँ' इस अभिप्रायसे यतिवृषभ आचार्यने यहां 'एगजीवेण कालो' यह सूत्र कहा है । * भुजगार विभक्तिस्थानवाले जीवका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट . काल एक समय है। ६४२३. शंका-भुजगार विभक्तिस्थानवाले जीवका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कैसे है ? समाधान-जब कोई एक छब्बीस विभक्तिस्थानवाला या सत्ताईस विभक्तिस्थानवाला जीव सम्यक्त्वको ग्रहण करके अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाला होता है तब उसके भुजगारका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय पाया जाता है। शंका-भुजगार किसे कहते हैं ? समाधान-थोड़ी प्रकृतियोंकी सत्तासे बहुत प्रकृतियोंकी सत्ताको प्राप्त होना भुजगार कहलाता है। तथा अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना होकर जिसके चौबीस प्रकृतियोंकी सत्ता है ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव जब मिथ्यात्वको प्राप्त होता है तब उसके भी मुजगारका एक समय मात्र काल देखा जाता है, क्योंकि चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तासे अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ताको प्राप्त हुए जीवके प्रकृतियोंमें वृद्धि देखी जाती है, इसलिये यह भुजगार है। * अल्पतर विभक्तिस्थानवाले जीवका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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