Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 420
________________ गा० २२ ] भुजगारविहीए कालो ३६५ माया - लोभसंजल० भुज० अप्प० ओघभंगो । अवट्ठि० जह० एयसमओ, उक्क० अंतो मु ० ४३५. मदि-सुद- अण्णाण अप्प० जहण्णुक्क० एगसमओ, अवहि० तिण्णि भंगा। जो सो सादि सपज्जवसिदो, तस्स जह० एगसमओ उक्क उवड्ढपोग्गलपरियडुं । एवं मिच्छादिहीणं वत्तव्यं । विहंग० अप्प जहण्णुक्क० एगसमओ | अवद्विद० जह० एगसमओ, उक्क० सगुक्कस्सहिदी | आमिणि० - सुद० - ओहि० अप्पद० ओघभंगो । अवदि० जह० दुसमऊण दोआवलियाओ, उक्क० छावसागरोमाणि सादिरेयाणि । एवमोहिदंस • सम्मादिट्ठी • वत्तव्वं । मणपज० अप्पदर० जहण्णुक्क० एगसमओ । अवदि० जह० दुसमऊण दोआवलिय०, उक्क० पुव्वकोडी देसूणा । एवं परिहार० संजदासंजद० । णवरि, अवट्टिद० जह० अंतोमुहुत्तं । सामाइय छेदो० अप्पदर० ओघभंगो | अवदि० मणपजवभंगो । णवरि जह० एयसमओ । संजद० अप्पदर ० अवदि • सामाइयछेदोवट्ठावणभंगो । णवरि अवधि ० जह० दुसमयूण दो आवलि० । अल्पतरका काल ओघके समान है। तथा अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । ० ४३५. मत्यज्ञान और श्रुताज्ञानमें अल्पतरका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा अवस्थितके तीन भंग हैं । उनमें से सादि-सान्त अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल उपार्थपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । इसीप्रकार मिथ्यादृष्टि जीवों के भी अल्पतर और अवस्थितके कालका कथन करना चाहिये । विभंगज्ञानियों में अल्पतरका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय तथा अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में अल्पतरका काल ओघके समान है । तथा अवस्थितका जघन्य काल दो समय कम दो आवलीप्रमाण और उत्कृष्ट काल साधिक छयासठ सागर प्रमाण है । इसीप्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके अल्पतर और अवस्थितका काल कहना चाहिये । मन:पर्ययज्ञानमें अल्पतरका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा अवस्थितका जघन्य काल दो समय कम दो आवलीप्रमाण और उत्कृष्टकाल कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है । इसीप्रकार परिहार विशुद्धि संयत और संयतासंयत जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंके अवस्थितका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है । सामायिक और छेदोपस्थापना संयतोंमें अल्पतरका काल ओघके समान है। तथा इनके अवस्थितका काल मन:पर्ययज्ञानके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके अबस्थितका जघन्यकाल एक समय है । संयतों में अल्पतर और अवस्थितका काल सामायिक और छेदोपस्थापना के समान जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि संयतों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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