Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 400
________________ गा० २२] पयडिहाणविहत्तीए अप्पाबहुप्राणुगमो ३७५ गारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । उवक्कमणकालविसेसो एत्थ ण णिहालेयव्वो, उवक्कममाणजीवाणं पमाणेण अविसेसे संते उवक्कमणकालविसयफलोवलंभादो। * छव्वीसविहत्तिया अणंतगुणा। ४०६. को गुणगारो ? छव्वीसविहत्तियरासिस्स असंखेज्जदिभागों । एवं चुण्णिसुत्तोपो उच्चारणोघसमाणो समत्तो । ६४०७. संपहि उच्चारणमस्सियूण आदेसप्पाबहुअंवत्तहस्सामो । कायजोगि-ओरा लिय०-अचक्खु०-भवसिद्धि०-आहारि त्ति ओघभंगो। ६४०८. आदेसेण णिरयगईएणेरईएसु सव्वथोवा वावीसविहत्तिया। सत्तावीसबिह० असंखेज्जगुणा, एक्कवीसविह० असंवेज्जगुणा, चउवीसवि० असंग्वेज्जगुणा, अहावीसवि० असंखे० गुणा, छव्वीसविह० असंखेज्जगुणा। एवं पढमपुढवि-पंचिंदियतिरिक्ख शंका-चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्यासे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्याके लानेके लिये गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-गुणकारका प्रमाण आवलीका असंख्यातवां भाग है। प्रकृतमें उपक्रमण कालविशेषका विचार नहीं करना चाहिये, क्योंकि उपक्रमण कालों में उत्पन्न होनेवाले जीवोंकी संख्या यदि समान हो तो उपक्रमणकालकी अपेक्षा विचार करने में सार्थकता है। * अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे हैं। ४०६. शंका-प्रकृतमें गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-प्रकृतमें गुणकारका प्रमाण छव्वीस विभक्तिस्थानवाली जीवराशिका असंख्यातवां भाग है। ___ इस प्रकार चूर्णिसूत्रके ओघका कथन समाप्त हुआ। इसके समान ही उच्चारणाका ओघका कथन है। ६४०७. अब उच्चारणाका आश्रय लेकर आदेशकी अपेक्षा अल्पबहुत्वको बतलाते हैं- काययोगी, औदारिककाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक इनमें अट्ठाईस आदि विभक्तिस्थानवाले जीवोंका अल्पबहुत्व ओघके समान है। ६४०८. आदेशसे नरकगतिमें नारकियोंमें बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार पहली पृथिवीके नारकी जीवोंमें, पंचेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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