Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे । पडिविहत्ती २ पंचिंतिरि०पज्जत्त-देव-सोहम्मादि जाव सहस्सारे ति वत्तव्वं । विदियादि जाप सत्तमि त्ति एवं चेव वत्तव्वं । णवरि वावीस-एक्कपीसविहत्तिया णत्थि। एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-भवण-वाण-जोदिसि० वत्तव्यं । तिरिक्व० पढमपुढविभंगो। णवरि छव्वीसविहात्तया अणंतगुणा । पंचिंदियतिरिक्वअपज्ज. सव्वत्थोवा सत्तावीसविह० । अहावीसविह० असंखेज्जगुणा । छव्वीसविह० असं० गुणा । एवं मणुसअपज्ज-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय अपज्ज-चत्तारिकाय यादर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत्ततस अपज्ज-विहंग० वत्तव्वं ।
६ ४०६. मणुस्सेसु सव्वत्थोवा पंचविहत्तिया। एगवि० संखेज्जगुणा, दुवि विसेसाहिया, तिवि० विसेसा०, एक्कारसवि० विसे०, बारसवि० विसे०, चदुवि० संखेज्जगुणा, तेरसवि• संखे० गुणा०, वावीसवि० संखे० गुणा, तेवीसवि० विसे०, एकतिर्यच और पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त जीवोंमें तथा सौधर्म और ऐशान स्वर्गसे लेकर सहस्त्रार तकके देवोंमें अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवी पृथिवी तक भी इसीप्रकार कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि यहां बाईस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव नहीं होते हैं। दूसरी आदि पृथिवियोंमें अल्पबहुत्वका जिसप्रकार कथन किया है उसीप्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीवोंमें तथा भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें कहना चाहिये। सामान्य तिर्यंचोंमें पहली पृथिवीके समान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि यहां पर अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव अनन्तगुणे होते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें सत्ताईस विभक्तिस्थान वाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, बादर और सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे पृथिवी आदि चारों स्थावरकाय, त्रसलब्ध्यपर्याप्त और विभंगज्ञानी जीवोंमें कथन करना चाहिये ।
६४०१. मनुष्योंमें पांच विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे एक विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे दो विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे तीन विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे ग्यारह विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे बारह विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे चार विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे तेरह विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे बाईस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे सत्ताईस विभ
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