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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ म्मीसाणकप्पेसु एकवीसविहत्तिया (-य) जीवभागहारे संते णिरयतिरिक्खेसु असंखेज्जावलियमेत्तेण भागहारेण होदव्वं ? ण च एवं, वातपुधत्तमेत्तुवक्कमणंतरेण उक्कस्सेण सह विरोहादो। ण एस दोसो, णिरयतिरिक्खगईसु एकवीसविहत्तियाणमसंखेज्जावलियमेत्तभागहारभुवगमादो । ण च वासपधत्तंतरेण सह विरोहो, तस्स वइपुलवाचयत्तावलंबणादो । पयारंतरेण वि एत्थ परिहारो चिंतिय वत्तब्वो।
* अट्ठावीससंतकम्मिया असंखेनगुणा ।
६४०५. कुदो ? अहावीससंतकम्मिए सम्मादिष्ठिणो मोत्तूण अण्णत्थ अणंताणु० चउक्कस्स विसंजोयणाभावादो। ण च ते सव्वे विसंजोएंति तेसिमसंखेज्जदिभागमेत्ताणं चेव जीवाणं अणंताणुबंधिविसंजोयणपरिणामाणं संभवादो। एत्थ को गुण
शंका-जब कि सौधर्म और ऐशान कल्पमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण लानेके लिये भागहार संख्यात आवली प्रमाण है तो नारकी और तियचोंमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण लानेके लिये भागहारका प्रमाण असंख्यात आवली होना चाहिये। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि ऐसा माननेपर नारकी और तिर्यंचोंमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंके उत्कृष्ट उपक्रमणकालका अन्तर जो वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा उसके साथ विरोध आता है ?
समाधान-यह दोष ठीक नहीं है, क्योंकि नरकगति और तिर्यचगतिमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्या लानेके लिये भागहारका प्रमाण असंख्यात आवली स्वीकार किया है। किन्तु ऐसा स्वीकार करनेपर भी इस कथनका वर्षपृथक्त्व प्रमाण अन्तर कालके साथ विरोध नहीं आता है, क्योंकि यहां वर्षपृथक्त्व पद वैपुल्यवाची स्वीकार किया है । अथवा यहां उक्त शंकाका परिहार प्रकारान्तरसे विचार करके कहना चाहिये। ___ * चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं।
४०५. शंका-चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे क्यों हैं ?
समाधान-अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले सम्यग्दृष्टि जीवोंको छोड़ कर अन्यत्र चार अनन्तानुबन्धी प्रकृतियोंकी विसंयोजना नहीं होती है। पर सभी अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना नहीं करते हैं, क्योंकि उनके असंख्यातवें भागमात्र ही जीवोंके अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजनाके कारणभूत परिणाम सम्भव हैं । इससे प्रतीत होता है कि चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे अट्ठाईस विभकिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे होते हैं।
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