Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे । पयडिविहत्ती २ * चउवीसाए संतकम्मिया असंखे० गुणा ।
$४०४. को गुणगारो ? आवलि० असंखे० भागो । एकवीसविहत्तियकालेण चउवीसविहत्तियकालो सरिसो, सोहम्मीसाणकप्पेसु सयल-असंजदसम्मादिहीणिवासेसु चेव चउवीस-एकवीसविहत्तियाणं संभवादो। उवरि किण्ण घेप्पदे १ ण, सोहम्मीसाणसम्माइटीहितो असंखेजगुणहीणेसु घेप्पमाणे कारणबहुत्ताभावेण असंग्वेजगुणहीणाणं गहणप्पसंगादो। ण च उवकमणकालमस्सिदूण गुणगारो आवलियाए असंखेजदि भागो त्ति वोत्तुं सक्किअदे, सोहम्मीसाण-उवक्कमणकालादो बेछावहिसागरभरुवक्कमणकालस्स वि संखेजगुणस्सेव उवलंभादो। एवमुवकमणकाले सरिसे संते कथमसंखेजगुणतं जुजदि त्ति, ण एस दोसो, मणुसेहि समुप्पज्जमाणखइयसम्माइष्टिसंखेजजीवहितो सोहम्मीसाणकप्पेसु अणंताणुबंधिचउकं विसंजोएमाण-अठ्ठावीससंतकम्मियवेदगसम्माइट्ठीण मुवसमसम्माइट्टीणं च समयं पडि पलिदो० असंखे० भागमेत्ताणमुवलं
* इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हैं।
६४०४. शंका-प्रकृतमें गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-प्रकृतमें गुणकारका प्रमाण आवलीका असंख्यातवां भाग है।
शंका-चौबीस विभक्तिस्थानका काल इक्कीस विभक्तिस्थान के कालके समान है, क्योंकि समस्त असंयतसम्यग्दृष्टियों के निवासभूत सौधर्म और ऐशान कल्पमें ही चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव अधिक संभव हैं। शायद कहा जाये कि सौधर्म और ऐशान कल्पके ऊपरके सभ्यग्दृष्टि जीव प्रकृतमें क्यों नहीं ग्रहण किये गये हैं तो उसका समाधान यह है कि सौधर्म और ऐशान कल्पके सम्यग्दृष्टियोंसे ऊपरके कल्पोंमें असंख्यातगुणे हीन सम्यग्दृष्टि होते हैं,अतः उनके ग्रहण करनेपर बहुत्वका कारण न होनेसे इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी अपेक्षा चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातगुणे हीन स्वीकार करना पड़ेंगे। तथा उपक्रमण कालकी अपेक्षा इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका गुणकार आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि प्रकृतमें यदि एकसौ बत्तीस सागरके भीतर होनेवाले उपक्रमण कालका भी ग्रहण किया जाय तो वह सौधर्म और ऐशानके उपक्रमणकालसे संख्यातगुणा ही पाया जायेगा। इसप्रकार उपक्रमण कालके समान रहते हुए इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे चौबीस विभक्तिस्थान. वाले असंख्यातगुणे कैसे बन सकते हैं ? ___ समाधान-यह ठीक नहीं है, क्योंकि सौधर्म और ऐशान कल्पमें मनुष्योंमेंसे उत्पन्न होने वाले संख्यात क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंकी अपेक्षा अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करने वाले अहाईस विभक्तिस्थानी वेदक सम्यग्दृष्टि तथा उपशमसम्यग्दृष्टि जीव प्रति समय पल्योपम
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