Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
पयडिट्ठा विहत्तीए अप्पा बहुश्राणुगमो
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कओ विसेसो अस्थि, उमयत्थ संखेजसमयणियमदंसणादो। ण च जहण्णुक संतरविसेसो अत्थि एगसमय छम्मासन्भंतरणिय मदंसणादो । तदो पुब्विलत्थो चेव घेत्तव्वो ।
* तेवीसाए संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया ।
९४०१. कुदो ? सम्मत्तक्खवणकालादो विसेसाहियम्मि सम्मामिच्छत्तक्खवणकालम्मि संचिदजीवाणं वि जुत्तीए विसेसाहियत्तदंसणादो । सम्मत्तक्खवणकालादो सम्मामिच्छत्तक्खवणकालो विसेसाहिओ त्ति कुदो णव्वदे ? पुब्विल्ल अद्धप्पाबहुआदो । * सत्तावीसाए संतकम्मविहन्तिया असंखेज्जगुणा ।
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४०२. को गुणगारो ? पार्लदो ० असंखेभागो । कुदो ? पलिदो असंखे ० भागमेकाले संचिदत्तादो सम्मत्तादो मिच्छत्तं पडिवजमाणजीवाणं बहुत्तुवलंभादो च । अन्तर की अपेक्षा दोनों प्रस्थापककालों में विशेषता होगी सो बात भी नहीं है, क्योंकि दोनों प्रस्थापककालों में जघन्य अन्तरके एक समय और उत्कृष्ट अन्तर के छह महीना होनेका नियम देखा जाता है । अतः तेरह विभक्तिस्थान के कालसे बाईस विभक्तिस्थानका काल संख्यातगुणा है यह पूर्वोक्त अर्थ ही ग्रहण करना चाहिये ।
* बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक हैं ।
४०१. शंका - बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे तेईस विभक्तिस्थानवाले जीव विशेष अधिक क्यों हैं ?
समाधान-क्योंकि सम्यक्प्रकृतिके क्षपणाकाल से सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिका क्षपणकाल विशेष अधिक है । अत: उसमें संचित हुए जीव भी विशेष अधिक हैं । यह युक्तिसे सिद्ध होता है ।
शंका-सम्यक्प्रकृतिके क्षपणकालसे सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिका क्षपणकाल विशेष अधिक है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- पूर्वोक्त कालविषयक अल्पबहुत्व से जाना जाता है ।
* तेईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव असंख्यातहैं।
९ ४०२. शंका - प्रकृतमें गुणकारका प्रमाण क्या है ?
समाधान - प्रकृत में पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकारका प्रमाण है ।
शंका- प्रकृतमें पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकारका प्रमाण क्यों है ? समाधान - क्योंकि सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका सञ्जय पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक होता रहता है और सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वको प्राप्त होने वाले
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