Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 390
________________ गा० २२] पयडिभणविहत्तीए अप्पाबहुअाणुगमो याहि समहियत्तुवलंभादो। केत्तियमेतेण विसेसाहिया ? अहियसंखेजावलियासु संचिदजीवमेत्तेण । * चदुहं संतकम्मविहत्तिया संखेज्जगुणा। ६३६८. को गुणगारो ? किंचूण तिण्णि रूवाणि । कुदो ? इत्थिवेदक्खवणकालादो चत्तारिविहत्तियकालस्स किंचूणतिगुणत्तुवलंभादो । तं जहा-दुसमयूणदोआवलियूणअस्सकण्णकरणकालो कोधकिट्टीकरणकालो कोधतिषिणसंगहकिट्टीवेदयकालो त्ति, एदे तिणि चदुण्हं विहत्तियकाला बारसविहत्तियकालादो पादेकं विसेसहीणा । संपहि एदेसु तिसु कालेसु तत्थ एगकालस्स संखेजदिभागं घेत्तूण सेसदोकालेसु जहा परिवाडीए दिण्णेसु ते दो वि काला इत्थिवेदखवणकालेण सरिसा होदूण तत्तो दुगुणतं पावेंति । पुणो संखेजदिभागूणो गहिदसेसकालो इत्थिवेदखवणकालादो जेण किंचूणो तेण बारसविहत्तियकालादो चदुण्हं विहत्तियकालो किंचूणतिगुणो त्ति सिद्धं । एदम्मि काले संचिदजीवाणं पि एसो चेव गुणगारो; कालाणुसारिजीवसंचयम्भुवगमस्स शंका-उन विशेष अधिक जीवोंका प्रमाण क्या है ? समाधान-ग्यारहवें विभक्तिस्थानके कालसे बारहवें विभक्तिस्थानका काल जितनी संख्यात आवलियां अधिक है, उसमें जितने जीवोंका संचय होता है उतना ही विशेषाधिक जीवोंका प्रमाण है। * बारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे चार विभाक्तस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ६ ३९८. शंका-यहां गुणकारका प्रमाण क्या है ? समाधान-कुछ कम तीन गुणकारका प्रमाण है। शंका-गुणकारका प्रमाण इतना क्यों है ? समाधान-क्योंकि स्त्रीवेदके क्षपणकालसे चार विभक्तिस्थानका काल कुछ कम तिगुना पाया जाता है। उसका खुलासा इसप्रकार है-दो समयकम दो आवलियोंसे न्यून अश्वकर्णकरणका काल, क्रोधकी कृष्टि करणका काल और क्रोधकी तीन संग्रह कृष्टियोंका वेदक काल ये तीनों काल मिलकर चार विभक्तिस्थानका काल होता है। किन्तु इस तीनों कालों में से प्रत्येक काल बारह विभक्तिस्थानके कालसे विशेषहीन है । अब इन तीनों कालोंमेंसे किसी एक कालके संख्यातवें भागको ग्रहण करके और उसके दो भाग करके प्रत्येक भागके ऊपर शेष दो कालोंको क्रमसे देयरूपसे दे देनेपर वे दोनों ही प्रत्येक काल स्त्रीवेदके कालके समान होते हैं और मिलकर स्त्रीवेदके कालसे दूने हो जाते हैं । तथा संख्यातवें भागसे न्यून शेष तीसरा काल चूंकि स्त्रीवेदके क्षपणकालसे कुछ कम होता है, इससे सिद्ध होता है कि बारह विभक्तिस्थानके कालसे चार विभक्तिस्थानका काल कुछ कम तिगुना है। तथा इस कालमें संचित हुए जीवोंका गुणकार भी इतना ही होगा। कालके अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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