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गा० २२ ]
पयडिट्ठाणविहत्तीए अप्पाबहुअाणुगमो
णिरत्थयं । ण च जीवट्ठाणसुत्तेण असमयाहियछमासणियमबलेण एगेगगुणहाणम्मि जीवसंचयं सरिसभावेण परूवणेण सह विरोहो, पुधभद-आइरियाणं मुहविणिग्गयमेत्तेण दोण्हं थप्पभावमुक्गयाणं विरोहाणुववत्तीदो ।
__ यदि कहा जाय कि आठ समय अधिक छह महीनाके नियमके बलसे एक एक गुणस्थानमें जीवोंके संचयका समानरूपसे कथन करनेवाले जीवस्थानके सूत्रके साथ इस कथन का विरोध हो जायगा सो भी बात नहीं है, क्यों कि ये दोनों उपदेश अलग अलग आचार्योंके मुखसे निकले हैं, अतः दोनों स्वतन्त्ररूपसे स्थित होनेके कारण इनमें विरोध नहीं हो सकता।
विशेषार्थ-दसवें गुणस्थानमें १ विभक्तिस्थान होता है और नौवें गुणस्थानमें २, ३, ४, ५, ११, १२ और १३ विभक्तिस्थान होते हैं । यद्यपि २१ विभक्तिस्थान भी नौवें गुणस्थानमें होता है किन्तु वह केवल नौवेंमें न होकर अन्यत्र भी होता है और इस विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्याका निर्देश भी इसी अपेक्षासे किया गया है । अत: इसे छोड़ भी दिया जाय तो भी दसवें गुणस्थानसे नौवें गुणस्थानमें कई गुनी जीवराशि प्राप्त होती है। यह बात उक्त विभक्तिस्थानोंके अल्पबहुत्वपर ध्यान देनेसे समझमें आ जाती है। किन्तु जीवट्ठाणके द्रव्यप्रमाणानुयोगद्वार में बतलाया है कि अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, क्षीणमोह और अयोगिकेवली गुणस्थानमें जीवोंकी उत्कृष्ट संख्या समान होती है। अतः यतिवृषभ आचार्यके चूर्णिसूत्रोंके उक्त कथनका जीवढाणके कथनके साथ विरोध आता है। किन्तु वीरसेन स्वामीने इसको मान्यताभेद कह कर समाधान किया है। वे लिखते हैं कि कदाचित् छह माह और आठ समयके अन्तमें लगातार आठ सिद्ध समय प्राप्त होसकते हैं और उनमें ६०८ जीव क्षपक श्रेणीपर चढ़ सकते हैं । अतः प्रत्येक गुणस्थानमें ६०८ जीव बन जाते हैं यह जीवट्ठाणके द्रव्यप्रमाणानुयोग द्वारके उक्त सूत्रका अभिप्राय है। किन्तु चूर्णिसूत्रोंका यह अभिप्राय है कि यद्यपि आठ सिद्ध समयोंके प्राप्त होनेका कोई नियम नहीं है कदाचित् ७, ६, ५, ४, ३, २ और १ सिद्ध समय भी प्राप्त होते हैं, फिर भी वे लगातार न प्राप्त होकर एक अन्तर्मुहूर्त, एक दिन, एक पक्ष आदिके भीतर भी प्राप्त होते हैं । अतः प्रत्येक गुणस्थानमें ६०८ जीव न मान कर कालके प्रतिभागके अनुसार ही जीवोंकी संख्या मानना चाहिये। तात्पर्य यह है कि कदाचित् इस क्रमसे जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ें जिससे उक्त विभक्तिस्थानोंके कालके अनुसार बटवारा होगया । इसप्रकार यह बात चूर्णिसूत्रों के अभिप्रायानुसार सम्भव है, किन्तु जीवट्ठाणके अभिप्रायानुसार सम्भव नहीं। तथा जो बात जीवट्ठाणके अभिप्रायानुसार सम्भव है बह चूर्णिसूत्रोंके अभिप्रायानुसार सम्भव नहीं है।
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