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गा० २२ ] पयडिट्ठाणविहत्तीए अप्पाबहुप्राणुगमो
३५६ भणदि
* सव्वयोवा पंचसंतकम्मविहत्तिया 10
३६२. जीवा इदि एत्थ वत्तव्वं ? ण, अत्थावत्तीदो चेव तदवगमादो । कुदो एदेसिं थोवत्तं ? समयूणदोआवलियाहि संचिदत्तादो । (* एकसंतकम्मविहत्तिया संखेजगुणा ।।
३६३. कुदो ? संखेज्जावलियकालभंतरे संचिदत्तादो। संखेजावलियत्तं कुदो णवदे ? उच्चदे, तं जहा-लोभसुहुमकिट्टीवेदयकालं आणियट्टिम्म विदियबादरलोभ संगहकिट्टि वेदय-काल (-किहिवेदयकालं ) समयूणदोआवलिऊणलोभपढमसंगहकिट्टीवेदयकालं च धेतूण एगविहत्तियकालो होदि । पुणो एदे तिष्णि वि काला पादेक्कं संखेजावलियमेत्ता अण्णोणं पेक्खिय संखेज्जावलियाहि समया (समन्भ) हिया । तेण एकिस्से
* पांच विभक्तिस्थानवाले जीव सबसे थोड़े हैं। ६३९२.शंका-इस उपर्युक्त सूत्र में 'जीवा' इस पदको और निक्षिप्त करना चाहिये था ?
समाधान-नहीं, क्योंकि उक्त सूत्रमें 'जीवा' इस पदके नहीं रखने पर भी अर्थापत्तिसे ही उसका ज्ञान हो जाता है।
शंका-ये पांच विभक्तिस्थानवाले जीव अन्य सभी विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे थोड़े क्यों हैं ?
समाधान-क्योंकि पांच विभक्तिस्थानका काल एक समय कम दो आवली है, अतः इतने काल में सबसे थोड़े ही जीव संचित होंगे।
* पांच विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे एक विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यातगुणे हैं।
६३९३. शंका-ये एक विभक्तिस्थानवाले जीव पांच विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे संख्यातगुणे क्यों हैं ?
समाधान-क्यों कि एक विभक्तिस्थानका काल संख्यात आवली है जो कि पांच विभक्तिस्थानके कालसे संख्यातगुणा है। अतः पांच विभक्तिस्थानके कालसे संख्यातगुणे कालके भीतर संचित एक विभक्तिस्थानवाले जीव पांच विभक्तिस्थानवाले जीवोंसे संख्यातगुणे ही होंगे।
शंका-एक विभक्तिस्थानका काल संख्यात आवली है यह किससे जाना जाता है ?
समाधान-इस शंकाका समाधान इसप्रकार है-लोभकी सूक्ष्मकृष्टिका वेदककाल तथा अनिवृत्तिकरणमें लोभकी दूसरी बादर संग्रहकृष्टिका वेदककाल और लोभकी पहली संग्रहकृष्टिका एक समयकम दो आवलीसे न्यून वेदककाल इन तीनों कालोंको मिलाकर एक विभक्तिस्थानका काल होता है, इससे जाना जाता है कि एक विभक्तिस्थानका काल संख्यात आवलीप्रमाण है। तथा ये तीनों ही काल अलग अलग संख्यात आवलीप्रमाण हैं और एक दूसरेसे संख्यात आवली अधिक हैं। इससे जाना जाता है कि एक विभक्तिस्थानका
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