Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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३८५. काल - अप्पा बहुआणुगमेण दुविहो णिद्देसो, ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सव्वथोवो पंचविहत्तियकालो । लोभसुहुमसंगह किट्टीवेदयकालो संखेजगुणो, पंचविहचियसमयूण- दो आवलिकालेण संखेजावलियमेतसुडुमार्कही वेदयकालम्म भागे हिदे संखेजरूवोवलंभादो | लोभबिदिय बादर किट्टीवेदयकालो विसेसाहियो । केत्तियमेत्तो बिसेसो ? संखेज्जावलियमेत्तो । उवरि वि जत्थ विसेसाहियं भणिहिदि तत्थ तत्थ सो विसेसो संखेज्जावलियमेत्तोत्ति घेत्तव्वो । लोभ० पढमसंगहकिट्टीवेदयकालो विसेसाहिओ । मायाए तदियसंगह किट्टीवेदयकालो विसेसाहिओ । तिस्से चैव विदियसंगह किट्टी वेदयकालो विसे० । पढमसंगहाकट्टी वेदयकालो विसे० | माणत दिय संगह किट्टी वेदयकालो विसे० । विदियसंगह किडीवेदयकालो विसे । पढमसंगह किहीवेदयकालो विसेसाहिओ । कोहतदियसंगह किडीवेदयकालो विसे० । विदियसंगह किट्टीवेदयकालो विसे० । पढमसंग किट्टी वेदय कालो
विशेषार्थ-यहां अल्पबहुत्वके दो भेद कर दिये हैं एक काल अल्पबहुत्व और दूसरा जीव अल्पबहुत्व | काल अल्पबहुत्वके द्वारा विभक्तिस्थान विषयक कालोंके अल्पबहुत्वका विचार किया गया है और जीव अल्पबहुत्व के द्वारा एक आदि विभक्तिस्थानवाले जीवों के अल्पबहुत्वका विचार किया गया है ।
$ ३८५. काल-अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमें से ओधकी अपेक्षा पांच विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है इससे लोभी सूक्ष्म संग्रहकृष्टिका वेदककाल संख्यातगुणा है। पांच विभक्तिस्थानका जो एक समय कम दो आवली काल कहा है उसका लोभके सूक्ष्म संग्रहकृष्टि के संख्यात आवलीप्रमाण वेदकाल में भाग देनेपर संख्यात अंक प्राप्त होते हैं। इससे जाना जाता है कि पांच विभक्तिस्थानके कालसे लोभकी सूक्ष्म संग्रहकृष्टिका वेदक काल संख्यातगुणा है । इससे लोभकी दूसरी बादरकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । यहां विशेषका प्रमाण कितना है ? संख्यात आवली है । आगे भी जहां जहां पूर्व स्थानके कालसे उससे आगे स्थानका काल विशेष अधिक कहा जायगा वहां वह विशेष संख्यात आवली प्रमाण लेना चाहिये । लोभकी दूसरी बादरकृष्टिके कालसे लोभकी पहली संग्रहकृष्टिका बेदक काल विशेष अधिक है। इससे मायाकी तीसरी संग्रहकृष्टिका वेदक काल विशेष अधिक है । इससे मायाकी दूसरी संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे मायाकी पहली संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे मानकी तीसरी संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे मानकी दूसरी संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे मानकी पहली संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे क्रोधकी दूसरी संग्रहकृष्टिका वेदककाल
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