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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे । पयडिविहत्ती २ विसेसाहिओ। केत्तियमेत्तेण ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण । छब्बीस अहावीस-विहत्तियाणं काला बे वि सरिसा विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण ? अंतोमुत्तेण । विदियादि जाव सत्तमि ति सव्वत्थोवो सत्तावीसविह० कालो। चउवीसवि• कालो असंखेजगुणो। छव्वीस-अहावीसविह० कालो दो वि सरिसा विसेसाहिया। एवं भवण-वाण जोदिसि. वत्तव्वं । ___ १३८७. तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु सव्वत्थोवो बावीसविह• कालो । सत्तावीसविह० कालो असंखेजगुणो। चउवीसविह० कालो असंखजगुणो । एकवीसविह० कालो विसे०। केत्तियमेत्तेण ? मासपुधत्तेण सादिरेएण । अहावीसविह० कालो वि०॥ के० मेतेण? पलिदो० असंखे० भागेण । छव्वीसविह० कालो अणंतगुणो । एवं दोण्हं पंचिंदियतिरिक्खाणं । णवरि एकवीस-विहत्तियकालस्सुवरि अट्ठावीस-छब्बीसविहत्तियकालो विसेसा० । केत्तियमेत्तेण? पुवकोडिपुधत्तेण । एवं जोगिणीणं । णवरि वावीसविभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इससे इक्कीस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इससे चौबीस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है। कितना विशेष अधिक है ? पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण विशेष अधिक है । छब्बीस और अट्ठाईस विभक्तिस्थानोंके काल परस्पर समान होते हुए भी चौबीस विभक्तिस्थानके कालसे विशेष अधिक हैं। कितने विशेष अधिक हैं ? अन्तर्मुहूर्तप्रमाण विशेष अधिक हैं।
दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीमें सत्ताईस विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है। इससे चौबीस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है । छब्बीस और अट्ठाईस विभक्तिस्थानके काल परस्पर समान होते हुए भी चौबीस विभक्तिस्थानके काल से विशेष अधिक हैं। इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके कहना चाहिये ।
३८७.तियंचगतिमें तिथंचोंमें बाईस विभक्तिस्थानका काल सबसे थोड़ा है। इससे सत्ताइस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इससे चौबीस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है। इससे इक्कीस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है। कितना विशेष अधिक है ? साधिक मासपृथक्त्व विशेष अधिक है। इक्कीस विभक्तिस्थानके कालसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है। कितना विशेष अधिक है ? पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण विशेष अधिक है। अट्ठाईस विभक्तिस्थानके कालसे छब्बीस विभक्तिस्थानका काल अनन्तगुणा है । इसीप्रकार पंचेन्द्रिय तियच और पंचेन्द्रिय पर्याप्त तियंचोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन दोनोंके इक्कीस विभक्तिस्थानके कालसे अद्वाईस और छब्बीस विभक्तिस्थानोंका काल विशेष अधिक कहना चाहिये । कितना विशेष अधिक कहना चाहिये ? पूर्वकोटि पृथक्त्व विशेष अधिक कहना चाहिये। इसीप्रकार योनिमती पंचेन्द्रिय तिर्यचोंके कथन कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके
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