Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
विसे० । चदुण्हं संजलणाणं किट्टीकरणद्धा संखेजगुणा । अस्सकण्णकरणद्धा विसे० छण्णोकसायखवणद्धा त्रिसे० । इत्थि० खवणद्धा विसे० । णत्रुंस० खत्रणद्धा विसे० । तेरसविहत्तियकालो संखेजगुणो, बावीसविहत्तियकालो विसे, तेवीसविहत्तियकालो विसेसाहिओ । सत्तावीसविहत्तिय कालो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखे० भागो | एकवीसविहत्तियकालो असंखेञ्जगुणो । चउवीसविहत्तियकालो संखेजगुणो । अट्ठावीसविहत्तियकालो विसे० । केत्तियमेतो विसेसो ? तिणि पालदो ० असंखेजदिभागमेत्तो । कुदो १ चउवी सविहत्तियउक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तन्भहियवे छावट्टिसागरोममेतो । तं पेक्खिय अट्ठावीसविहत्तियकालस्स तीहि पलिदो० असंखेज्जदिभागेहि अन्भहियबेछावद्विसागरोवममेत्तस्स विसेसाहियत्तुवलंभादो । छवीसविहत्तियकालो अनंतगुणो । चउन्हं तिण्डं दोण्हमेकिस्से विहत्तियकालो जहण्णओ वि अत्थि उकस्सओ वि । तत्थ परोदएण चडिदस्स जहण्णओ । सोदएण चडिदस्स उक्कस्सो होदि । पंचवित्तिय पहुडि जाव तेवीसविहत्तिओ त्ति ताव एदेसिं जहण्णुक्कस्सकालो सरिसो । कुदो विशेष अधिक है । इससे क्रोधकी पहली संग्रहकृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है । इससे चारों संज्वलनोंके कृष्टिकरणका काल संख्यातगुणा है । इससे अश्वकर्णकरणका काल विशेष अधिक है। इससे छह नोकषायोंके क्षपणका काल विशेष अधिक है । इससे स्त्रीवेदके क्षपणका काल विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदके क्षपणका काल विशेष अधिक है । इससे तेरह विभक्तिस्थानका काल संख्यातगुणा है । इससे बाईस विभक्तिस्थानका काल संख्यातगुणा है । इससे तेईस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है । इससे सत्ताईस विभक्तिस्थानका काल असंख्यातगुणा है । गुणकारका प्रमाण क्या है ? यहां गुणकारका प्रमाण पस्योपमका असंख्यातवां भाग है । इससे इक्कीस विभक्तिस्थानका काल असंख्यात - गुणा है। इससे चौबीस विभक्तिस्थानका काल संख्यातगुणा है । इससे अट्ठाईस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है । यहां विशेषका प्रमाण कितना है ? पल्योपमके तीन असंख्यातवें भागमात्र है; क्योंकि चौबीस विभक्तिस्थानका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त अधिक एकसौ बीस सागर है । और अट्ठाईस विभक्तिस्थानका काल पल्योपमके तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एकसौ बत्तीस सागर प्रमाण है । अतः इन दोनों कालोंको देखते हुए चौबीस विभक्तिस्थान के कालसे अट्ठाईस विभक्तिस्थानका काल विशेष अधिक है यह सुनिश्चित होता है । अट्ठाईस विभक्तिस्थानके कालसे छब्बीस विभक्तिस्थानका काल अनन्तगुणा है । चार, तीन, दो और एक विभक्तिस्थानका काल जघन्य भी पाया जाता है और उत्कृष्ट भी । उनमें से अन्य कषायके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके जघन्य काल पाया जाता है और स्वोदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके उत्कृष्ट काल पाया जाता है । पांच विभक्तिस्थान से लेकर तेईस विभक्तिस्थान तक ५, ११, १२, १३, २१, २२, २३
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