Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
पयडिहाणविहत्तीए कालाणुगमो
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६३७५. कसायाणुवादेण कोधक० अट्ठावीस-सत्तावीस-छब्बीस-चउवीस-एकवीस० के० ? सव्वद्धा । तेवीस-बावीस० के० ? जह० एयसमओ, उक्क० अंतोमु० । तेरसबारस-एक्कारस-पंच-चदु० ओघभंगो। एवं माण०, णवरि तिण्हं विहत्तिया अस्थि । एवं माय०, णवरि दोहं विहत्तिया अस्थि । एवं लोभ०, गवरि एय० अस्थि । माणमाया-लोभकसाईसु जहाकम चदुण्हं तिण्डं दोण्ठं विह० जह० दोआवलि० दु-समऊणाओ। अकसा० चउवीस-एक्कवीस० के० ? जह० एगसमओ, उक्क. अंतोमु० । एवं जहाक्खाद० । सुहुमसांपराइय० एवं चेव । णवरि एयवि० जहण्णुक्क० अंतोमु० । समय प्राप्त होता है। तथा जो अपगतवेदी निरन्तर पांच विभक्तिस्थानवाले होते रहते हैं उनके पांच विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है । यहां निरन्तर होनेका तात्पर्य यह है कि नाना जीव पांच विभक्तिस्थानको प्राप्त हुए और उनके पांच विभक्तिस्थानके कालके समाप्त होनेके अन्तिम समयमें अन्य नाना जीव पांच विभक्तिस्थानको प्राप्त हो गये । इसी प्रकार तीसरी, चौथी आदि वार भी जानना । किन्तु ऐसे वार अति स्वल्प ही होते हैं अतः उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्तसे अधिक नहीं प्राप्त होता। शेष कथन सुगम है।
३३७५.कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोध कषायमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस और इक्कीसं विभक्तिस्थानवालोंका काल कितना है ? सर्व काल है। तेईस और बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । तेरह, बारह, ग्यारह, पांच और चार विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल ओघके समान है । इसीप्रकार मान कषायमें जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि मान कषायमें तीन विभक्तिस्थानवाले जीव भी पाये जाते हैं। इसीप्रकार मायाकषायमें जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि माया कषायमें दो विभक्तिस्थानवाले भी जीव पाये जाते हैं । इसी प्रकार लोगकषायमें जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि यहां एक विभक्तिस्थानवाले भी जीव पाये जाते हैं। मान, माया और लोभकषायी जीवोंमें यथाक्रमसे चार, तीन और दो विभक्तिस्थानोंका जघन्य काल दो समय कम दो आवली है। अकषायी जीवोंमें चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार यथाख्यात संयतोंमें जानना चाहिये । तथा इसीप्रकार सूक्ष्मसांपराय संयतोंके कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सूक्ष्म सांपरायिक संयतोंमें एक विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होता है।
विशेषार्थ-क्रोध कषायमें जो २८, २७, २६, २४ और २१ विभक्तिस्थानोंका काल सर्वदा बतलाया सो इसका कारण यह है कि क्रोध कषायवाले जीव और उक्त विभक्तिस्थानवात जीव सर्वदा पाये जाते हैं, अतः क्रोध कषायमें उक्त विभक्तिस्थानोंका सर्वदा
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