Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे । पयडिविहत्ती २ उक्क० अंतोमुडुत्तं । चउवीस-एकवीस० अंतरं के० १ जह• एगसमओ, उक्क० मासपुधत्तं । बावीस०जह० एगसमओ, उक्क. वासपुधत्तं ।
६३८१. वेदाणुवादेण इत्थि० तेवीस-तेरस-बारस० जह० एगसमओ, उक्क० वासपुधत्तं । सेसप० णस्थि अंतरं । एवं णवूस० वत्तव्वं । पुरिस० तेवीस-बावीस जह. एगसमओ, उक० छम्मासा । तेरस-वारस-एक्कारस-पंच० जह० एगसमओ, उक्क० वासं सादिरेयं । सेसप० णत्थि अंतरं । अवगद० चउवीस-एक्कवीम० जह० एगक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल मासपृथक्त्व है। बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है।
विशेषार्थ-औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोगमें २४ और २१ विभक्तिस्थानों का जघन्य अन्तरकाल एक समय स्पष्ट ही है । कि तु उत्कृष्ट अन्तर जो मासपृथक्त्व बतलाया है उसका यह अभिप्राय है कि २४ और २१ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका यदि मरण न हो तो एक मासपृथक्त्व तक नहीं होता है । तथा उक्त योगोंमें जो २२ विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व बतलाया है उसका यह अभिप्राय है कि २२ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका यदि मरण न हो तो वर्षपृथक्त्व काल तक नहीं होता है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें जो २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर बतलाया है वह वैक्रियिक मिश्रकाययोगके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकी अपेक्षासे जानना चाहिये। इसी प्रकार आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगमें २८, २१ और २१ विभक्तिस्थानोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकी अपेक्षासे जानना चाहिये । तथा कार्मणकाययोगमें २८ और २७ विमक्तिस्थानोंका जो जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त बतलाया है इसका यह अभिप्राय है कि २८
और २७ विभक्तिस्थानवाले कोई भी जीव कमसे कम एक समय तक और अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक कार्मणकाययोगी नहीं होते।
६३८१.वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदमें तेईस, तेरह और बारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। त्रीवेदमें शेष पदोंका अन्तर नहीं पाया जाता है। इसी प्रकार नपुंसकवेदमें कथन करना चाहिये। पुरुषवेदमें तेईस और बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। तेरह, बारह, ग्यारह और पांच विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य अन्तरकाल. एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक एक वर्ष है।
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