Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 367
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ ३३७६.आभिणि-सुद०-ओहि० अठ्ठावीस-चउवीस-एकवीस केव० १ सम्बद्धा । सेसप० ओघभंगो। एवं मणपजव०-संजद०-सामाइय-छेदोव०-संजदासंजद०-ओहिदंस०-सम्मादिही त्ति वत्तव्वं । वरि मणपज्जव० वारस० जह० एगसमओ णस्थि । पाया जाना असम्भव नहीं है । २३ और २२ विभक्तिस्थानवाले जो नाना जीव एक समय तक क्रोध कषायमें रहे और दूसरे समयमें उनकी कषाय बदल गई उन क्रोध कषायवाले जीवोंके २३ और २२ विभक्तिस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। तथा क्रोध कषायमें २३ और . २ विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त स्पष्ट ही है। इसी प्रकार क्रोध कषायमें १३, १२, ११, ५ और ४ विभक्तिस्थानोंका काल जो ओघके समान बतलाया है सो इसका यह अभिप्राय है कि जो क्रोधके उदयके साथ क्षपक श्रेणीपर चढ़ते हैं उनके क्रोध कषायमें उक्त विभक्तिस्थानोंका काल ओघके समान बन जाता है । इसी प्रकार मान, माया और लोभ कषायमें विभक्तिस्थानोंका काल जानना चाहिये । किन्तु मान कषायमें तीन विभक्तिस्थान, माया कषायमें दो विभक्तिस्थान और लोभ कषायमें एक विभक्तिस्थान भी होता है जिनका उत्कृष्ट काल ओघके समान बन जाता है। किन्तु जो जीव क्रोध कषायके उदयके साथ क्षपक श्रेणीपर चढ़े हैं, उनके मान कषायमें चार विभक्तिस्थानका, माया कषायमें तीन विभक्तिस्थानका और लोभ कषायमें दो विभक्तिस्थानका जघन्य काल दो समय कम दो आवलिप्रमाण प्राप्त होगा। जो मानके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हैं उनके माया कषायमें तीन विभक्तिस्थानका और लोभ कषायमें दो विभक्तिस्थानका जघन्य काल दो समय कम दो आवलिप्रमाण प्राप्त होता है। तथा जो जीव मायाके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हैं उनके लोभ कषायमें दो विभक्तिस्थानका जघन्य काल दो समय कम दो आवलिप्रमाण प्राप्त होता है। जो जीव एक समयतक अकषायी होकर दूसरे समयमें मर जाते हैं उनके २१ और २४ विभक्तिस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। तथा उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त स्पष्ट ही है। अकषायी जीवोंके समान यथाख्यात संयत और सूक्ष्म साम्पराय संयत जीवोंके जानना। किन्तु सूक्ष्म साम्पराय संयतोंके एक विभक्तिस्थान भी होता है जिसका काल ओघके समान जानना चाहिये। ६३७६. मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अट्ठाईस, चौवीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? सर्व काल है। शेष पदोंका काल ओषके समान है। इसीप्रकार मनःपर्थयज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टियोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि मनःपर्ययज्ञानियों में बारह विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्यकाल एक समय नहीं है। विशेषार्थ-जो जीव नपुंसक वेदके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ते हैं उनके बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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