Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गां० २२ )
पयडिट्ठाणविहत्तीए कालाणुगमो
६३७४. वेदाणुवादेण इथिवेद० अठ्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस-चउवीस-एकवीस० के० ? सव्वद्धा । तेवीस-बावीस-तेरस-बारस० जहण्णुक० अंतोमु०। एवं णस० । जघन्य और उत्कष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही होगा। तथा कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टियोंके मरकर औदारिकमिश्र काययोगी होनेपर यदि कृतकृत्यवेदकके कालमें एक समय शेष रह जाता है तो उनके २२ विभक्तिस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है। तथा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त स्पष्ट ही है। जिसप्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंके २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण घटित करके लिख आये हैं उसीप्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके घटित कर लेना चाहिये। २४ विभक्तिस्थानवाले जीव कमसे कम अन्तर्मुहूर्तकाल तक और लगातार पल्यके असंख्यातवें भाग कालतक वैक्रियिक मिश्रकाययोगी हो सकते हैं, अतः वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें २४ विभक्तिस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा । तथा वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें २२ विभक्तिस्थानका जघन्य
और उत्कृष्ट काल औदारिकमिश्रकाययोगके समान घटित कर लेना चाहिये । वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें २१ विभक्तिस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बतलानेका कारण यह है कि २१ विभक्तिस्थानवाले वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंका प्रमाण संख्यात है। अहारककाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है अतः इसमें सम्भव सब पदोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। आहारकमिश्रकाययोगका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इसमें सम्भव सब पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा। यद्यपि कार्मणकाययोगका काल सर्वदा है तो भी २८,२७ और २४ विभक्तिस्थानवाले जीव मरकर निरन्तर कार्मणकाययोगको नहीं प्राप्त होते हैं अतः इनका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण बन जाता है। तथा २६ विभक्तिस्थानवाले जीव निरन्तर कार्मणकाययोगको प्राप्त होते रहते हैं अतः उनका काल सर्वदा कहा है। तथा जो २२ और २१ विभक्तिस्थानवाले जीव एक विग्रहसे अन्य गतिमें उत्पन्न होते हैं या जिनके २२ विभक्तिस्थानके कालमें एक समय शेष रहनेपर कार्मणकाययोग प्राप्त होता है और इसके बाद ब्यवधान पड़ जाता है उनके २२ और २१ विभक्तिस्थानका जघन्य काल एक समय पाया जाता है । तथा जो २२ और २१ विभक्तिस्थानवाले जीव निरन्तर कार्मणकाययोगी होते रहते हैं उनके २२ और २१ विभक्तिस्थानका उत्कृष्ट काल संख्यात समय पाया जाता है, क्योंकि ऐसे जीव संख्यात ही होते हैं।
३७४. वेद मागेणाके अनुवादसे स्त्रीवेदमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? सर्व काल है । तेईस, बाईस, तेरह
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