Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
गा० २२ ]
पडा वित्तीकालागुगमो
३३७
अंत | मणुस्सअप ० अट्ठावीस - सत्तावीस - छब्बीस० के० १ जह० एगसमओ, उक्क० पलिदोवमस्स असंखेजदि भागो
९३७३. जोगाणुवादेण पंचमण० - पंचवाचि० अट्ठावीस सत्तावीस-छब्वीस- चउवीसएकवीस० के० १ सव्वद्धा । तेवीस-बावीस - तेरस - बास- एक्कारस-पंच-चदु-तिण्णिदोणि- एगविहत्ति० के० ? जह एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । एवं कायजोगी, ओरालि० | ओरालियमिस्स अट्ठावीस सत्तावीस - छव्वीस० के० : सव्वद्धा । चउवीसएकवीस ० के ० १ जहण्णुक्क अंतोमुहुत्तं । वावीस० केवचिरं० ? जह० एगसमओ, कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि बारह विभक्तिस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों में अट्ठाईस सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानवालोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ।
O
विशेषार्थ - कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टियोंके मर कर मनुष्यों में उत्पन्न होनेपर यदि कृतकृत्यवेदक सम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रह जाता है, तो उन पर्याप्त मनुष्यों के २२ विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है । तथा उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त स्पष्ट ही है । जो जीव स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं उनके बारह विभक्तिस्थानका काल अन्तर्मुहूर्त से कम नहीं होता है अतः स्त्रीवेदी मनुष्योंके बारह विभक्ति - स्थानका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है । अट्ठाईस और सत्ताईस विभक्तिस्थानों के कालमें एक समय शेष रहतेहुए जो नाना जीव एक साथ लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो जाते हैं उनके २८ और २७ विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय पाया जाता है । तथा जिन २८ विभक्तिस्थानवाले नाना जीवोंके मरणमें एक समय शेष रहने पर २७ विभक्तिस्थान आ जाता है उनके २७ विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय इस प्रकार भी प्राप्त हो जाता है । तथा २७ विभक्तिस्थानवाले जिन नाना जीवोंके मरणमें एक समय शेष रहनेपर २६ विभक्तिस्थान आ जाता है उनके २६ विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है । तथा शेष काल सुगम है । अत: उसका खुलासा नहीं किया ।
६३७३. योगमार्गणा के अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचो वचनयोगी जीवों में अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? सर्वकाल है | तेईस, बाईस, तेरह, बारह, ग्यारह, पांच, चार, तीन, दो और एक विभक्तिस्थानवालोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार काययोगी और औदारिक काययोगी जीवोंका काल जानना चाहिये । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? सर्वकाल है । चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल
४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org