Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[पयडिविहत्ती २
उक्क० अंतोमु० । वेउब्धियमिस्स० अठ्ठावीस-सत्तावीस-छब्बीस० के० १ जह• एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। चउवीस० के० १ जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। बावीस० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एकवीस० जहण्णुक० अंतोमु०। आहार सव्वपदा० के० १ जह० एगसमओ, उक० अंतोमुहुत्तं । आहारमिस्स० जहण्णुक० अंतोमुहुतं । कम्मइय० अठ्ठावीस-सत्तावीस-चउवीस० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे • भागो। छव्वीस. के. ? सव्वद्धा । वावीस-एकवीस० जह० एगसमओ, उक० संखेजा समया। कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस, और छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका काल कितना है ? जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य
और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। आहारककाययोगियोंमें संभव सर्व विभक्तिस्थानवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । आहारकमिश्रकाययोगियोंमें संभव समी स्थानवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। कार्मणकाययोगियोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस और चौबीस विभक्ति स्थानवाले जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण है । छब्बीस विभक्ति स्थानवाले जीवोंका कितना काल है ? सर्व काल है। बाईस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है।
विशेषार्थ-२८, २७, २६, २४ और २१ विभक्तिस्थान सर्वदा पाये जाते हैं और पांचों मनोयोगी तथा पांचों वचनयोगी जीव भी सर्वदा होते हैं। अतः पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें उक्त विभक्तिस्थानोंका काल सर्वदा कहा । तथा २३, २२, १३, १२, ११, ५, ४, ३, २ और १ विभक्तिस्थान सर्वदा नहीं होते और इन विभक्तिस्थान वाले जीवोंके योग बदलते रहते हैं । अतः पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंमें उक्त विभक्तिस्थानोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा । इसी प्रकार काययोगमें और औदारिक काययोगमें भी घटित कर लेना चाहिये । औदारिक मिश्रकाययोगमें २८, २७, और २६ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका सर्वकाल होता है यह सुगम है । किन्तु २४ और २१ विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात ही होते हैं अत: इनका
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