Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
vasaire द्वाणसमुक्कित्तणा
(पंचण्डं विहत्ती चत्तारि संजलणाओ पुरिसवेदो च ।
१२१५. पुरिसवेदो चत्तारि संजलणाओ च सुद्धाओ जत्थ संतकम्मं होंति तत्थ पंचपडद्वाणं होदि ।
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| *एकारसहं विहृत्ती, एदाणि चेव पंच छण्णोकसाया च
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१२१६. चदुसंजल - पुरिसवेद - छण्णोकसाय केवला जत्थ संतकम्मसरूवेण चिति तत्थ एक्कारसहं द्वाणं ।
*बारसहं विहत्ती एदाणि चेव इत्थवेदो च
६२१७. एदाणि एक्कारसकम्माणि इत्थिवेदसहियाणि जत्थे संतकम्मं तत्थ बारसहं ट्ठा होदि ।
(*तेरसहं विहत्ती एदाणि चेव णवंसयवेदो च ।
। १२१८. बारसपयडीओ पुव्वुत्ताओ जत्थ णवुंसयवेदेण सह सतं होंति तत्थ तेरसहं णं ।
(एकवीसाए विहत्ती एदे चेव अट्ठ कसाया च
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'६२१६. पुव्वुत्ततेरसकम्माणि अडकसाया च जत्थ संतं तत्थ एक्कवीसाए ट्ठाणं । * चारों संज्वलन और पुरुषवेद यह पांचप्रकृतिक विभक्तिस्थान है ।
$२१५. जहां पर केवल पुरुषवेद और चारों संज्वलन ये पांच कर्म सत्ता में पाये जाते हैं वहां पर पांचप्रकृतिक विभक्तिस्थान होता है ।
*पुरुषवेद और चार संज्वलन ये पूर्वोक्त पांच और छह नोकषाय यह ग्यारह प्रकृतिक विभक्तिस्थान है ।
$२१६. जहां पर चारों संज्वलन, पुरुषवेद और हास्यादि छह नोकषाय ये कर्म सत्ता में पाये जाते हैं वहां ग्यारहप्रकृतिक विभक्तिस्थान होता है ।
*पूर्वोक्त ग्यारह और स्त्रीवेद यह बारहप्रकृतिक विभक्तिस्थान है ।
$२१७.जहां पर स्त्रीवेदके साथ पूर्वोक्त ग्यारह कर्म सत्ता में पाये जाते हैं वहां बारह प्रकृतिक विभक्तिस्थान होता है ।
* पूर्वोक्त बारह और नपुंसकवेद यह तेरहप्रकृतिक विभक्तिस्थान है ।
$२१८. जहां पर नपुंसकवेद के साथ पूर्वोक्त बारह कर्म सत्ता में पाये जाते हैं वहां पर तेरहप्रकृतिक विभक्तिस्थान होता है ।
* ये पूर्वोक्त तेरह और आठ कषाय यह इक्कीस प्रकृतिक विभक्तिस्थान है ।
२१. जहां पर पूर्वोक्त तेरह कर्म और अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क तथा प्रत्याख्यानावरण ages ये आठ कर्म सत्तामें पाये जाते हैं वहां पर इक्कीसप्रकृतिक विभक्तिस्थान होता है ।
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