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गा० २२]
पावहत्तीए कालो
२७१
विह० के० ? जह० एगसमओ, अंतोमुहुत्तं । उक्क० ओघभंगो । सत्तावीस० ओघभंगो । छव्वीसविह० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० सगहिदी । तेवीस-तेरस -बारसएक्कारसविह० ओघमंगो । णवरि, बारसविह० एयसमओ णत्थि । एकवीसविह० केव० ? जह० अंतोमुहुंत, उक० ओघमंगो । वावीसविह० जह० एमसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । पंचविह० के० ? जहण्णुक० एगसमओ । णवुंस० अठ्ठावीसविह० के० ? जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीससागरोक्माणि सादिरेयाणि । सत्तावीस-छब्बीसवि० एइंदियभंगो | चउवीस-बावीस- एकवीस विह० णारयभंगो | णवरि, चवीसएकवीसवि० जह० एगसमओ । सेसं इत्थिभंगो | णवरि, बारस - वि० जहण्णुक० समओ | अवगदवेदे चउवीस - एक्बीसवि० केव० ? जह० एगसमओ, उक्क० अतोमुहुतं । सेसाणं जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं । णवरि, पंचविहत्ती केव० ? बेआवलियाओ बिसमऊणाओ ।
पुरुषवेद में अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थानका काल कितना है ? इन दोनों स्थानोंका जघन्यकाल क्रमसे एक समय और अन्तर्मुहूर्त है । तथा दोनों ही स्थानोंका उत्कृष्टकाल ओघ के समान है । तथा सत्ताईसप्रकृतिक स्थानका काल ओघके समान है। छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी स्थिति प्रमाण है । तेईस, तेरह, बारह और ग्यारह प्रकृतिकस्थानका काल ओवके समान है । इतनी विशेषता है कि बारह प्रकृतिकस्थानका जघन्यकाल एक समय नहीं है । इक्कीस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल ओधके समान है। बाईस प्रकृतिकस्थानका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त हैं । पांच प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है ।
नपुंसक वेद में अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल साधिक तेतीस सागर है । सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिकस्थानका काल एकेन्द्रियोंके समान है । चौबीस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिकस्थानका काल नारकियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि चौबीस और इक्कीस प्रकृतिक स्थानोंका जघन्यकाल एक समय है । शेष स्थानोंका काल स्त्रीवेदियोंके समान है । इतनी विशेषता है कि बारह प्रकृतिकस्थानका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय हैं ।
अपगतवेदमें चौबीस और इक्कीस प्रकृतिकस्थानका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । शेष स्थानोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि पांच प्रकृतिकस्थान दो समय कम दो आवली प्रमाण काल तक होता है ।
विशेषार्थ - स्त्रीवेद में २८ विभक्तिस्थानका जो साधिक पचपन पल्य उत्कृष्ट काल
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