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जयधवलासहिदे कसाथपाहुडे [पयडिविहत्ती २ यादि जाव सत्तनि ति सव्वपदा केत्तिया ? असंखेज्जा । एवं पंचिंतिरि जोणिणीपांचं तिरि ० अपज्ज ० -मणुसअपज्ज ० -भवण ०-वाण -जोदिसि ० -सव्वविगलिंदियपंचिंदियअपज्ज०-चत्तारिकाय-बादर-सुहुम पज्ज० अपज्ज-तस अपज्ज०- विहंग. वत्तव्यं ।
६३५६. मणुसगईए मणुस्सेसु अठ्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीसविह केत्ति० ? असंखेज्जा । सेसपद० संखेज्जा० । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सव्वपदा के० ? संखेज्जा । एवं सबह-आहार-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा०-मणपज्ज०-संजद०समाइयछेदो०-परिहार०-सुहुम०-जहाक्खाद० वत्तव्यं । अतः इनमें २८, २७, २६, २४ और २१ विभक्तिस्थानवालोंका प्रमाण असंख्यात बन जाता है । पर २२ विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात ही होंगे; क्योंकि सामान्य बाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात नहीं होता। अतः मार्गणाविशेषमें उनका असंख्यातप्रमाण किसी भी हालतमें सम्भव नहीं है। __दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीमें स्थित अट्ठाईस आदि संभव सभी विभक्तिस्थानवाले नारकी जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसीप्रकार पंचेन्द्रियतिथंच योनिमती, पंचेन्द्रियतिथंच लब्ध्यपर्याप्त, मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त, भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, सभी प्रकारके विकलेन्द्रिय, पंचेद्रियलब्ध्यपर्याप्त, बादर और सूक्ष्म तथा पर्याप्त,
और अपर्याप्त चारों प्रकारके पृथिवी आदि कायवाले, त्रस लब्ध्यपर्याप्त और विभङ्गज्ञानी जीवोंकी संख्या कहना चाहिये।
विशेषार्थ-ज्योतिषी देवों तक ऊपर जितनी मार्गणाएं गिनाई हैं उनमें २८, २७, २६ और २४ ये चार विभक्तिस्थान पाये जाते हैं किन्तु शेष विकलेन्द्रिय आदि मार्गणाओंमें २८, २७.और २६ ये तीन विभक्तिस्थान ही पाये जाते हैं । तथा इन सभी मार्गणाओंमें प्रत्येक मार्गणावाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात है अतः यहां उक्त प्रत्येक विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात बन जाता है।
६३५६. मनुष्यगतिमें मनुष्योंमें अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। तथा शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनीमें सभी विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धिके देव तथा आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायसंयत और यथाख्यात संयत जीवोंकी संख्या कहना चाहिये।
विशेषार्थ-इन उपर्युक्त मार्गणाओंमें कहां कितने विभक्तिस्थान होते हैं, इसका उल्लेख पहले कर आये हैं। यहां इन मार्गणास्थानवी जीवोंकी संख्या पर्याप्त मनुष्य और
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