________________
गा० २२ ] पयडिट्ठाणविहत्तीए परिमाणाणुगमो
६३५६. संजदासंजद० अट्ठावीसविह० चउवीसविह० केव० ? असंखेज्जा । सेसप० संवेज्जा । काउ० तिरिक्खोघभंगो। किण्ह० णील० एवं चेव । णवरि एकवीसविह० के० १ संखेज्जा। तेउ० पम्म० सुक्क० पंचिंदियभंगो। अभव्वसिद्धि० छब्बीसवि० केत्ति० ? अणंता । खइए० एकवीसविह० के० असंखेज्जा । सेसपदा संखेज्जा । उवसमे अठ्ठावीस-चउवीसवि० के० ? असंखेज्जा । सासण अहावीसवि० असंखेज्जा । सम्मामि० अहावीस-चउवीस० के० १ असंखेज्जा ।
एवं परिमाणं समत्तं । विशेषार्थ-उपर्युक्त मार्गणाओं में २७ और २६ विभक्तिस्थान नहीं पाये जाते हैं क्योंकि वे मिथ्यादृष्टिके ही होते हैं। शेष सब पाये जाते हैं किन्तु वेदकसम्यग्दृष्टियोंके २८, २४, २३ और २२ ये चार विभक्तिस्थान ही पाये जाते हैं । अतः उपर्युक्त मार्गणाओंमें जहां जितने स्थान पाये जाते हैं उन स्थानवाले जीवोंकी संख्या ओघके समान बन जाती है।
१३५६. संयतासंयत जीवोंमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। तथा अपनेमें संभव शेष स्थानवाले जीव संख्यात हैं। कापोत लेश्यामें ओघतियं चक समान जानना चाहिये। कृष्ण और नील लेश्यामें इसीप्रकार जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नील लश्याम इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। पीत, पद्म और शुक्ल लश्यामें पंचेन्द्रियोंके समान जानना चाहिये।
विषार्थ-संयतासंयत गुणस्थानमें २८ और २४ विभक्तिस्थानवाले तिथंच भी होते हैं अतः इन दा स्थानवाले संयतासंयतोंका प्रमाण असंख्यात बन जाता है । तथा शेष स्थानवाले मनुष्य ही होते हैं अतः उनकी अपेक्षा संयतासंयतोंका प्रमाण संख्यात ही होगा । छहा लेइयावालोम किसके कितने स्थान किस किस गतिकी अपेक्षा संभव हैं यह बात स्वामित्व अनुयोगद्वारसे जान लेना चाहिये। उससे किस लेश्यामें किस स्थानवाले जीव कितने सम्भव हैं इसका भी आभास मिलजाता है जिसका उल्लेख ऊपर किया ही है। ___ अभव्योंमें छब्बीस विभकिस्थानवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंमें इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। अपनेमें संभव शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात ह । उपशम सम्यक्त्वमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। सासादनसम्यक्त्वमें अट्ठाईस विभक्तिस्थान वाले जीव कितने हैं ? असंख्यात है। सम्यग्मिथ्यात्वमें अट्ठाईस और चौबीस विभक्तिस्थान वाले जीव कितने हे ? असंख्यात हैं।
विशेषार्थ-सभी अभव्य छब्बीस विभक्तिस्थानवाले ही होते हैं और उनका प्रमाण अनन्त है, अतः अभव्योंमें २६ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण अनन्त कहा है। यद्यपि छह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org