Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ । पयडिट्ठाणविहत्तीए परिमाणाणुगमो
३२१ ६३५७. अणुद्दिसादि जाव अवराइद त्ति वावीसविह० केत्ति० ? संखेज्जा । सेसपदा असंखेज्जा । एइंदिय-बादरेइंदिय-सुहमेइंदिय० अहावीस-सत्तावीसविह केत्तिया ? असंखेज्जा । छवीसविह० के० ? अगंता। एवं वणप्फदि०-णिगोद०पज्ज. अपज्ज -मदि-सुदअण्णाण-मिच्छादि०-असण्णि त्ति वत्तव्वं । पंचिंदिय-पंचिंदियपज्ज-तस-तसपज्ज० अठ्ठावीस-सत्तावीस-[छठवीम] विह० चउवीसविह० एक्कवीसविह० केत्तिया ? असंखेज्जा । सेसप० संखेज्जा । एवं पंचमण-पंचवचि०पुरिस०-चक्खु०-सण्णि त्ति वत्तव्वं ।। मनुष्यनीकी संख्याके साथ संख्यात सामान्यकी अपेक्षा समान है यह दिखाने के लिये 'एवं सब्बढ०' इत्यादि कहा है।
६३५७. नौ अनुदिशोंसे लेकर अपराजिततक प्रत्येक स्थानमें बाईस विभक्तिस्थानवाले देव कितने हैं ? संख्यात हैं । तथा अपनेमें संभव शेष स्थानवाले देव असंख्यात हैं ।
एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें अट्ठाईस और सत्ताईस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसीप्रकार वनस्पतिकायिक, पर्याप्त वनस्पतिकायिक, अपर्याप्त वनस्पतिकायिक, निगोद, पर्याप्त निगोद, अपर्याप्त निगोद, मतिअज्ञानी, श्रुताज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंकी संख्या कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-२८ और २७ विभक्तिस्थानवाले वे ही जीव होते हैं जिन्होंने कभी उपशम सम्यक्त्व प्राप्त किया हो अतः इनका प्रमाण असंख्यात ही होगा। पर २६ विभक्तिस्थानवाले जीवोंमें सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्प्रकृतिसे रहित सभी मिथ्यादृष्टियोंका ग्रहण हो जाता है अतः इनका प्रमाण अनन्त होगा। इसी अपेक्षासे उपर्युक्त अनन्त संख्यावाली मार्गणाओंमें २८ और २७ विभक्तिस्थान वालोंका प्रमाण असंख्यात और २६ विभक्तिस्थानवालोंका प्रमाण अनन्त कहा है।
__ पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, त्रस और त्रसपर्याप्त जीवोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। तथा शेष विभक्तिस्थानवाले जीव संख्यात हैं। इसीप्रकार पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, पुरुष वेदी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोकी संख्या कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-उपर्युक्त मार्गणाओं में सभी स्थान सम्भव हैं पर जिन विभक्तिस्थानोंमें रहनेवाले उक्त जीव असंख्यात होते हैं ऐसे विभक्तिस्थान २८, २७, २६, २४, और २१ ही हो सकते हैं। अतः इन विभक्तिस्थानवाले पंचेन्द्रिय आदिका प्रमाण असंख्यात कहा है। तथा इनसे अतिरिक्त शेष विभक्तिस्थानवाले जीव सर्वत्र संख्यात ही होते हैं। अतः उनका प्रमाण संख्यात ही कहा है।
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