Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] पयडिहाणविहत्तीए फोसणाणुगमो
३६३. आदेसेण णिरयगईए णेरईएसु अष्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीसविह० के० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, छ-चोद्दसभागा वा देसूणा । सेसपदाणं खेत्तभंगो। पढमाए खेत्तभंगो । विदियादि जाव सत्तमि त्ति अट्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीसवि० के० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो, एक्कबे-तिण्णि-चचारि-पंच-छ. चोदसभागा वा देसूणा । चउवीस० खेत्तभंगो।
विशेषार्थ-यहां ओघकी अपेक्षा २८ और २७ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका अतीत कालीन स्पर्श जो त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग प्रमाण कहा है वह देवोंकी मुख्यतासे कहा है; क्योंकि तीन गतिके जीवोंमें देवोंका स्पर्श मुख्य है। तथा सब लोकप्रमाण स्पर्श तियचोंकी मुख्यतासे कहा है। इसीप्रकार २४ और २१ विभक्तिस्थानवालोंका अतीत कालीन स्पर्श भी देवोंकी मुख्यतासे कहा है। शेष गतियोंकी अपेक्षा २४ और २१ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श उसमें गर्भित हो जाता है । शेष कथन सुगम है।
६३६३.आदेशकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकियोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और कुछ कम छह बटे चौदह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष पदोंका स्पर्श क्षेत्रके समान जानना चाहिये। पहले नरकमें स्पर्श क्षेत्रके समान है। दूसरे नरकसे लेकर सातवें नरक तक अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विमक्तिस्थानवाले नारकियोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। तथा दूसरे नरककी अपेक्षा कुछ कम एक बटे चौदह भाग, तीसरे नरककी अपेक्षा कुछ कम दो बटे चौदह भाग, चौथे नरककी अपेक्षा कुछ कम तीन बटे चौदह भाग, पांचवें नरककी अपेक्षा कुछ कम चारबटे चौदह भाग, छठे नरककी अपेक्षा कुछ कम पांच बटे चौदह भाग और सातवें नरककी अपेक्षा कुछ कम छह बटे चौदह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। इन द्वितीयादि नरकोंमें चौबीस विभक्तिस्थानवालोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है ।
विशेषार्थ-सामान्यसे नारकियोंका या प्रत्येक पृथिवीके नारकियोंका जो वर्तमान और अतीत कालीन स्पर्श है वही वहां २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानकी अपेक्षा वर्तमान और अतीत कालीन स्पर्श जानना चाहिये, क्योंकि इन विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी नारंकियोंमें गति और आगतिका प्रमाण अधिक है किन्तु २४ विभक्तिस्थानवाले नारकियोंमें यह बात नहीं है। चौबीस विभक्तिस्थानवाला अन्य गतिका जीव तो नारकियोंमें उत्पन्न होता ही नहीं। हां ऐसा नारकी जीव मनुष्योंमें अवश्य उत्पन्न होता है पर उनका प्रमाण अति स्वल्प है अतः २४ विभक्तिस्थानकी अपेक्षा सामान्य नारकियोंका और प्रत्येक
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