Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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traiसहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
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९३६०. खेतानुगमेण दुविहो णिद्देसो, ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण छब्बीसविहत्तिया केवडिए खेत्ते १ सव्वलोगे । सेसप० के० खेत्ते ? लोग० असंखे० भागे । एवं तिरिक्ख - सव्वए इंदिय - पुढवि०- ० आउ० तेउ वाउ० तेसिं बादर अपज्ज - सुहुमपज्ज० अपज्ज० वणफदि० - णिगोद० - वादर सुहुम० पज्ज० अपज्ज० - कायजोगि०-ओरालि०ओरालिय मिस्स ० - कम्मइय० णवुंस ० चत्तारिक-मदि- सुदअण्णाण - असंजद ० - अचक्खु० माह और आठ समय में संख्यात जीव ही क्षायिक सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं पर उनक संचयकाल साधिक तेतीस सागर होनेसे २१ विभक्तिस्थानवाले क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंका प्रमाण असंख्यात बन जाता है। तथा शेष विभक्तिस्थानवाले जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टि और मनुष्य ही होते हैं अतः उनका प्रमाण संख्यात ही होगा । उपशम सम्यग्दृष्टियों में २८ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात है यह तो स्पष्ट है । किन्तु उपशम सम्यक्त्व में २४ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात उसी मतके अनुसार प्राप्त होगा जो उपशम सम्यक्त्वके कालमें भी अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना मानते हैं । सासादन में एक अट्ठाईस विभक्तिस्थान ही होता है और उनका प्रमाण असंख्यात है अतः यहां सासानमें अट्ठाईस विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात कहा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण भी असंख्यात है और उनमें २८ और २४ विभक्तिस्थानवाले जीव पाये जाते हैं अतः सम्यग्मिथ्यात्वमें २८ और २४ विभक्तिस्थानवाले जीवोंका प्रमाण असंख्यात कहा है ।
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इस प्रकार परिमाणानुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
३३६०. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेश निर्देश । उनमें से ओघकी अपेक्षा छब्बीस विभक्तिस्थानवाले जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्वलोक में रहते हैं । शेष विभक्तिस्थानवाले जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं । इसीप्रकार सामान्य तिर्यंच, सभी प्रकार के एकेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, बादरपृथिवीकायिक, बादरपृथिवीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, बादरवायुकायिक, बादरवायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त अपर्याप्त, सूक्ष्म जलकायिक, सूक्ष्म जलकायिक पर्याप्त अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक, सूक्ष्म अभिकायिक पर्याप्त अपर्याप्त, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्त अपर्याप्त, वनस्पतिकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक, बादरवनस्पति, बांदरवनस्पति पर्याप्त बादर वनस्पति अपर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पति, सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्त, सूक्ष्म वनस्पति अपर्याप्त, बादर निगोद, बादर निगोदपर्याप्त, बादर निगोद अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त, काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिकमिश्र काययोगी
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