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गा० २२]
पयडिट्ठाणविहत्तीए भंगविचो
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३३४६. ओरालियमिस्स० अष्ठावीस-सत्तावीस-छव्वीस० णियमा अस्थि । सेसपदा भयणिज्जा । कम्मइय० छव्वीस० णियमा अस्थि सेसपदा भयणिज्जा । एवमणाहारि० । आभिणि-सुद०-ओहि० अहावीस-चउवीस-एकवीसविह० णियमा अस्थि । सेसपदा भयणिज्जा । एवं मणपजव०-संजद-सामाइयच्छेदो०-परिहार०-संजदासंजदओहिदंस०-सम्मादिहि-वेदय० वत्तव्वं । णवरि वेदय० इगिवीसं णस्थि । अब्भवसिद्धि० छव्वीसविह० णियमा अस्थि । खयिगे एकवीसविह० णियमा अस्थि । सेसपदा विकल्प ३ और भंग ८ होंगे। सासादन सम्यग्दृष्टि स्थान भी सान्तर मार्गणा है पर उसके भंग आगे चल कर स्वतन्त्र गिनाये हैं, अतः यहां उसके सम्बन्धमें कुछ भी नहीं लिखा है।
६३४९. औदारिकमिश्र काययोगियोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस विभक्तिस्थानके धारक जीव नियमसे हैं। शेष स्थान भजनीय हैं। कार्मण काययोगमें छब्बीस विभक्तिस्थान नियमसे है, शेष स्थान भजनीय हैं। इसीप्रकार अनाहारक काययोगियों में समझना चाहिये।
विशेषार्थ-औदारिकमिश्र काययोगियोंमें २८, २७, २६, २४, २२ और २१ ये छह स्थान पाये जाते है। इनमेंसे २८, २७ और २६ स्थानके धारक उक्त जीव सर्वदा रहते हैं, अतः इन तीन स्थानोंकी अपेक्षा एक एक ध्रुवभंग होगा। शेष २४, २२ और २१ ये तीन स्थान भजनीय हैं । अतः इनकी अपेक्षा प्रस्तार विकल्प ७ और भंग २८ होंगे इसप्रकार प्रस्तार विकल्प ७ और कुल भंग २६ होंगे।
___ मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें अट्ठाईस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिस्थान नियमसे हैं। शेष स्थान भजनीय हैं। इसीप्रकार मनःपर्ययज्ञानी, संयत, : सामायिक संयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धि संयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वेदक सम्यग्दृष्टियोंके इक्कीस विभक्तिस्थान नहीं होता है।
विशेषार्थ-मतिज्ञानी आदि जीवोंके सचाईस और छब्बीसके सिवा मोहनीयके सभी स्थान पाये जाते हैं, अतः उनके भजनीय २३ आदि दसों विभक्तिस्थानोंके प्रस्तार विकल्प १०२३ और ध्रुव तथा अध्रुव सभी भंग ४६०४६ पाये जाते हैं। परिहारविशुद्धि संयत और संयतासंयत जीवोंके २८, २४, २३, २२ और २१ ये पांच स्थान तथा वेदक सम्यग्दृष्टियोंके २१ विभक्तिस्थानके विना शेष चार स्थान पाये जाते हैं। इनमेंसे २३ और २२ विभक्तिस्थान तीनों मार्गणाओंमें भजनीय हैं, अतः इन तीनोंमेंसे प्रत्येक मार्गणामें ३ प्रस्तार विकल्प और र भंग होते हैं। इनमें एक ध्रुवभंग भी सम्मिलित है।
अभव्य जीवोंके नियमसे छब्बीस विभक्तिस्थान पाया जाता है। क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंके इक्कीस विभक्तिस्थान नियमसे है। तथा शेष २३ आदि स्थान भजनीय हैं।
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