Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ भयणिजा । सासण. सिया अठ्ठावीसविहत्तिया सिया अट्ठावीसविहलिओ।
एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो । * सेसाणिओगद्दाराणि णेदव्वाणि । ६३५०. कुदो ? सुगमत्तादो । संपहि चुण्णिसुत्रेण सूचिदाणमुच्चारणामस्सिद्ग सेसाहियाराणं परूवणं कस्सामो ।
६३५१. भागाभागाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओषेण छव्वीसविह० सव्वजीवाणं केवडिओ भागो। अणंता भागा। सेतपदा सव्वनीवाणं केवडिओ भागो १ अणंतिमभागो। एवं तिरिक्ख-सव्वएइंदिय-वणप्फदि-णिगोद०कायजोगि०-ओरालिय० -ओरालियमिस्स-कम्मइय०-णस० - चत्तारिक०-मदि-सुदअण्णाण-असंजद-अचक्खु -तिष्णिलेस्सा-भवसिद्धि -मिच्छादि०-असण्णि०-आहारि०अणाहारित्ति वत्तव्यं । सासादन सम्यग्दृष्टियों में कदाचित् २८ विभक्तिस्थानवाले अनेक जीव होते हैं और कदाचित् अट्ठाईस विभक्तिस्थान वाला एक जीव होता है।
विशेषार्थ-अभव्योंके २६ विभक्तिस्थानको छोड़कर और दूसरा कोई स्थान नहीं पाया जाता है तथा अभव्यराशि ध्रुव है। इसलिये यहां एक ही भंग संभव है। क्षायिक सम्यग्दृष्टियोंके इक्कीस विभक्तिस्थान ध्रुव है शेष ८ स्थान भजनीय हैं, अतः यहां प्रस्तार विकल्प २५५ और ध्रुव तथा अध्रुव दोनों प्रकारके भंग ६५६१ होंगे। सासादन सान्तर मार्गणा है । अतः यहां २८ स्थानकी अपेक्षा भी २ भंग होंगे।
इसप्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय अनुयोगद्वार समाप्त हुआ । * भागाभाग, परिमाण आदि शेष अनुयोगद्वार जान लेने चाहिये। ६३५०.शंका-यहां शेष अनुयोगद्वारोंका कथन न करके सूचनामात्र क्यों की है ? समाधान-क्योंकि वे सुगम हैं, अतः चूर्णिसूत्रकारने उनकी सूचनामात्र की है।
अब चूर्णिसूत्रके द्वारा सूचित किये गये भागाभाग आदि शेष अनुयोगद्वारोंका उच्चारणाका आश्रय लेकर कथन करते हैं
६३५१. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। उनमें से ओघकी अपेक्षा छब्बीस विभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहभाग हैं। शेष विभक्तिस्थानवाले जीव सब जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। इसीप्रकार सामान्य तिथंच, सभी प्रकारके एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक, सब निगोदकायिक, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्र काययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, चारों कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्ण आदि तीम लेश्याओंमें प्रत्येक लेश्यावाले, भव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक इनके भी भागाभाग
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