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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ मदिसुदअण्णाण-विहंग-किण्ह०-णील-मिच्छा-असण्णि त्ति वत्तव्वं । णवरि वेउव्विय०किण्ह०-णील० चउवीस-एकवीसविहत्तिया णियमा अत्थि। मणुस्सअपजत्तएसु सव्वपदा भयणिज्जा । एवं वेउब्बियमिस्स-आहार०-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसाय०सुहुमसांपराय०- जहाक्खाद०-उवसमसम्मत्त-सम्मामि० वत्तव्यं । काययोगी, मत्यज्ञानी,श्रुताज्ञानी, विभङ्गज्ञानी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले, मिथ्यादृष्टि
और असंज्ञी जीवोंके अट्ठाईस आदि विभक्तिस्थानोंकी अपेक्षा एक ध्रुवभङ्ग कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि वैक्रियिककाययोगी, कृष्णलेश्यावाले और नीललेश्यावाले जीवोंमें चौबीस और इक्कीस विभक्तिवाले जीव भी नियमसे होते हैं।
, लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंमें सभी पद भजनीय हैं। इसीप्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसांपरायसंयत, ययाख्यातसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें कहना चाहिये।
विशेषार्थ-अपगतवेदी, अकषायी और यथाख्यात संयत इन तीन स्थानोंको छोड़कर शेष सात मार्गणाएं सान्तर हैं। इन मार्गणाओंमें कभी एक और कभी अनेक जीव होते हैं। तथा कभी इनमें जीवोंका अभाव भी रहता है। शेष तीन अपगतवेदी आदि मार्गणाएं यद्यपि सान्तर तो नहीं हैं क्योकि वेदरहित, कषायरहित और यथाख्यात संयत जीव लोकमें सर्वदा पाये जाते हैं। फिर भी मोहनीयकी सत्तासे युक्त इन मार्गणाओंवाले जीव कभी बिलकुल नहीं होते हैं, कभी एक होता है और कभी अनेक होते हैं, अतः इस अपेक्षा से ये तीन मार्गणाएं भी सान्तर हैं ऐसा समझना चाहिये । इसप्रकार इन उपर्युक्त दस मार्गणाओंके सान्तर सिद्ध होजानेपर इनमें संभव सभी पद भजनीय ही होंगे। लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंके अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस ये तीन स्थान पाये जाते हैं, अतः यहां प्रस्तारविकल्प सात और उच्चारणाविकल्प अर्थात् भंग छब्बीस होंगे। वैक्रियिक मिश्र काययोगियोंके अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस, बाईस और इक्कीस ये छह स्थान पाये जाते हैं, अतः यहां प्रस्तारविकल्प ६३ और भंग ७२८ होंगे। आहारककाययोगी
और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके अट्ठाईस, चौबीस और इक्कीस ये तीन स्थान पाये जाते हैं, अतः यहां प्रस्तारविकल्प सात और भंग २८ होंगे । अपगतवेदी जीवोंके २४, २१, ११, ५, ४, ३, २ और १ ये आठ स्थान पाये जाते हैं, अतः यहाँ प्रस्तारविकल्प २५५ और भंग ६५६० होंगे। कषायहित जीवोंके और यथाख्यातसंयतोंके २४ और २१ ये दो स्थान पाये जाते हैं, अतः यहांपर प्रस्तारविकल्प ३ और भंग ८ होंगे। सूक्ष्मसांपराय संयतोंके २४, २१ और १ ये तीन स्थान पाये जाते हैं, अतः यहांपर प्रस्तारविकल्प ७ और भंग २८ होंगे । उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें २८ और २४ ये दो स्थान पाये जाते हैं, अत: यहां प्रस्तार
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