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अयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पयडिविहत्ती ३ सलागाहि पुरदो कजं भविस्सीहिदि : : एसो एगो पत्थारो । एदस्स एका सलागा घेपदि । संपहि वावीसविहत्तियस्स भण्णमाणे एसो पत्थारो ; । संपहि एदस्सालावो वुच्चदे। तं जहा-सिया एदे च वावीसविहत्तिओ च१, सिया एदे च वावीसविहत्तिया च २ । एदस्स वि पत्थारस्स सलागा एका १। एवं तेवीस-बावीसविहत्तियाणमेगसंजोगपत्थारसलागाओ भाणदाओ। संपहि तेरसादीणं पि हाणाणमेगसंजोगपत्थारालावा पुध पुध भणिदूण गेण्हिदव्वा । णवरि, एगेगपत्थारम्भिएगेगा चेव सलागा लब्भदि तासिं लद्धसलागाणं पमाणमेदं १० । अथवा पुवहविदसंदिहिम्हि एगरूवेण दससु ओवट्टदेसु पुन्वुत्तदसपत्थारसलागाओ लन्भंति । एवं भयणिजपदाणमेगसंजोगपत्थारसलागपमाणपरूवणा कदा । संपहि दुसंजोगपत्थारसलागपमाणपरूवणं कस्सामो। तत्थ एस पत्थारो होदि । उवरिमसव्वसुण्णाओ धुवस्स, मज्झिमसव्व-अंका तेवीसाए, हेहिमसबका वावीसाए । अनेक जीव होते हैं। इन कही गई शलाकाओंसे आगे काम पड़ेगा। : : यह एक प्रस्तार है। इसकी एक शलाका लेना चाहिये ।
अब बाईस विभक्तिस्थानका कथन करते हैं। उसका प्रस्तार ; : यह है । अब इसके आलाप कहते हैं। वे इसप्रकार हैं-कदाचित् अट्ठाईस आदि ध्रुवस्थानवाले अनेक जीव और बाईस विभक्तिस्थानवाला एक जीव होता है। कदाचित अट्ठाईस आदि ध्रुवस्थानबाले अनेक जीव और बाईस विभक्तिस्थानवाले अनेक जीव होते हैं। इस बाईस विभक्तिस्थानके प्रस्तारकी भी एक शलाका है। इसप्रकार तेईस और बाईस विभक्तिस्थानोंके एक संयोगी प्रस्तारोंकी शलाकाएं कहीं। इसीप्रकार तेरह आदि विभक्तिस्थानोंके भी एक संयोगी प्रस्तार और उनके आलाप अलग अलग कहकर ग्रहण करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि एक एक प्रस्तार में एक एक शलाका ही प्राप्त होती है। अतः उन तेईस आदि विभक्तिस्थानोंके एक संयोगी भंगोंकी शलाकाओंका प्रमाण १० है। अब पहले 'एकोत्तरपदवृद्धो' इत्यादि आर्याकी जो संदृष्टि स्थापित कर आये हैं उसमेंसे एकके द्वारा दसके भाजित कर देनेपर पूर्वोक्त दस प्रस्तारशलाकाएं प्राप्त होती हैं।
इसप्रकार भजनीय पदोंके एक संयोगी प्रस्तारोंकी शलाकाओंका प्रमाण कहा। अब द्विसंयोगी प्रस्तारोंकी शलाकाओंका प्रमाण कहते हैं । द्विसंयोगी प्रस्तारोंकी शलाकाएं उत्पन्न करते समय प्रस्तार निम्नप्रकार होगा । इस प्रस्तारमें उपरके सभी शून्य ध्रुवस्थानोंके घोतक हैं । बीचके सभी अंक तेईस विभक्तिस्थानके द्योतक हैं और नीचेके सभी अंक बाईस विभक्तिस्थानके द्योतक हैं।
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