Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जाहिदे कसायपाहुडे
[ पयडिविहत्ती २
तिन्हं संजोगेण सत्त पत्थारसलागा ७ । तेवीसाए दोन्हं संजोगेण अट्ठ पत्थारसलागा
८ । तेवीसाए एकिस्से संजोगे णव पत्थारसलागा है ।
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९३३६ संपहि वावीसतेरसण्हं दुसंजोगपत्थारो एसो १ २। उवरिमचदुसुणाओ धुवस्स, मज्झिमअंका वावीसविहत्तियस्स, हेट्टिमअं का तेरसविहत्तियस्स । संपहि दस आलावो वुच्चदे । सिया एदे च वावीसविहत्तिओ च तेरस विहत्तिओ च । एवं सेसालावा जाणिदृण वत्तव्त्रा । एवं वावीसाए सह वारसादि जान एगविहत्तिओ पत्ते पत्तेयं दुसंजोगं काढूण अट्ठा पत्थारसलागाओ उत्पाएयव्त्राओ ८ ।
३ ३४०. संपहि तेरसण्हं बारसेहि सह दुसंजोगालावा वत्तव्वा । तत्थ एगा पत्थारसलागा लब्भदि १ । एवं तेरस धुवं काढूण णेयव्वं जाव एगविहत्तिओ ति । एवं णीदे तेरसविहत्तियस्स दुसंजोएण सत्त पत्थारा उप्पांति ७ । बारसविहत्तियस्स एक्का - रसादीहि सह दुसंजोगे भण्णमाणे छप्पत्थारसलागाओ लब्भंति ६ । एक्कारसविहत्तियस्स उवरिमेहि सह दुसंजोए भण्णमाणे पंच पत्थारसलागाओ लब्भंति ५ । पंचPreferrनके साथ मिलानेसे उत्पन्न हुई एक प्रस्तारशलाकाके मिला देनेपर आठ प्रस्तार शलाकाएं हो जाती हैं । इनमें तेईस विभक्तिस्थानको एक विभक्तिस्थानके साथ मिला देनेसे उत्पन्न हुई एक शलाकाके मिला देनेपर नौ प्रस्तारशलाकाएं हो जाती हैं ।
१३१८. अब बाईस और तेरह विभक्तिस्थानका द्विसंयोगी प्रस्तार कहते हैं । वह यह है
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ऊपर के चार शून्य ध्रुवस्थानके सूचक हैं। मध्य के अङ्क बाईस विभक्तिस्थान के सूचक हैं । नीचेके अंक तेरह विभक्तिस्थानके सूचक हैं। अब इस प्रस्तारके आलाप कहते हैं । कदाचित् ये अट्ठाईस आदि ध्रुवस्थानवाले अनेक जीव बाईस विभक्तिस्थानवाला एक जीव और तेरह विभक्तिस्थानवाला एक जीब होता है । इसीप्रकार शेष तीन आलाप भी जानकर कहना चाहिये । इसीप्रकार बाईस विभक्तिस्थानके साथ बारह विभक्तिस्थान से लेकर एक विभक्तिस्थान तक बाईस बारह, बाईस ग्यारह, बाईस पांच इसप्रकार द्विसंयोग करके प्रत्येककी आठ प्रस्तारशलाकाएं उत्पन्न कर लेना चाहिये ।
९३४०. अब तेरह विभक्तिस्थानका बारहविभक्तिस्थानके साथ द्विसंयोगी आलाप कहना चाहिये। यहां एक प्रस्तारशलाका प्राप्त होती है । इसप्रकार तेरह विभक्तिस्थानको ध्रुव करके एक विभक्तिस्थानतक ले जाना चाहिये । इसप्रकार ले जानेपर तेरह विभक्तिस्थानके द्विसंयोगी सात प्रस्तार उत्पन्न होते हैं। बारह विभक्तिस्थानके ग्यारह आदि विभक्तिस्थानों के साथ द्विसंयोगी प्रस्तारोंका कथन करनेपर छह प्रस्तारशलाकाएं प्राप्त होती हैं । ग्यारह विभक्तिस्थानके ऊपर के पांच आदि विभक्तिस्थानोंके साथ द्विसंयोगी प्रस्तारोंका कथन करने पर पांच प्रस्तारशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। पांच विभक्तिस्थानके ऊपरके चार आदि विभक्ति
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