Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जमवलातहि कला पाहुडे
[ पयडिविहती २
क्रिय चरिमसमंद सत्तावीसविहसिओ जो जादो तेण से काले उबसमसम्मतं घेतूण अट्ठावीससं समुप्पादे एमसमय अंतरुवलंभादो ।
* उक्कस्सेण उवड्ढपोग्गलपरियहं ।
९३१७. कुदो, अणादियमिच्छाही अद्धपोग्गल परियहस्तादिसमए उपसमलम्मचं पेतून जो अट्ठावीसविहत्तिओ जादो, संत्थ अट्ठावीसविहत्तीए आदि काढूण तदो सबचष्ण पलिदोषमस्स असंखे ० भागमेत्तकालेण सम्मत्तमुव्वेल्लिय सत्तावीसविहसिओ जादो। अंतरिय अद्धपोग्गलपरियहं भमिय सब्वजहण्णंतोमुंहुत्तावसेसे संसारे उपसमसम्मतं बेचून अट्ठावीसविहत्तिओ होदूण तदो अंतोसुहुतेण सिद्धो जादो । तस्स पुव्विल्लेण पलिदो • असंखे० भागेण पच्छिल्लेण अंतोमुडुत्तेण च ऊण-अद्धपोग्गलपरियहमेत्तुकस्संतरकालुवलंभादो । एवमचक्खु०-भवसिद्धियाणं वत्तव्वं ।
३३१८. संपहि उच्चारणाइरियवकखाणमस्सिदृण भणिस्सामो । उच्चारणाए ओघो करके मिध्यात्वकी प्रथमस्थितिके अन्तिम समयमें सत्ताईस प्रकृतिवाला हुआ । पुनः तदनन्तर कालमें उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करके अट्ठाईस प्रकृतिकी सत्ता उपार्जित की, उसके अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका अन्तरकाल एक समय पाया जाता है ।
* अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । ५ ३१७, शंका-अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुगल परिवर्तनप्रमाण कैसे है ।
समाधान - अब संसार में रहनेका काल अर्धपुद्गलपरिवर्तन शेष रह जाय तब जो अनादि मिध्यादृष्टि जीव अर्धपुद्गलपरिवर्तनकालके प्रथम समय में उपशम सम्यक्त्वको ग्रहण करक अट्ठाईस प्रकृतिस्थानकी सचावाला हुआ, और इसप्रकार अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानका प्रारंभ करक अनन्तर सबसे जघन्य पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र कालके द्वारा सम्यक्प्रकृति की उद्वेलना करके सत्ताईस प्रकृतिकस्थानवाला होकर अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानकें अन्तरको प्राप्त हुआ और उपार्थपुद्रलपरिवर्तन कालतक संसारमें परिभ्रमण करके संसार में भ्रमण करनेका काळ सबसे जघन्य अन्तर्मुहुर्त प्रभाग शेष रहनेपर उपशम सम्यक्स्वको ग्रहण करक जो पुनः अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानवाला होकर अनन्तर अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा सिद्धं हो जाता है उसक अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानका, अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानके अन्तर होनेके पहलेके पल्यके असंख्यातवेंभाग प्रमाण कालसे और पुनः अट्ठाईस प्रकृतिकस्थानके प्राप्त होनेके बदके अन्तर्मुहूर्त कालसे न्यून अर्धपुलपरिवर्तनमात्र उत्कृष्ट अन्तर काल होता है। इसी• प्रकार अचक्षुदर्शनी और भव्य जीवोंके कहना चाहिये ।
३३१८. अब उच्चारणाचार्यके व्याख्यानका आश्रय लेकर अन्तरकालको कहते हैं । - उच्चारणा वृत्तिके अनुसार ओघ अन्तरकालका कथन क्यों नहीं किया १
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