Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ] पयडिहाणविहत्तीए भंगविचो
२६५ च, सिया एदे च तेवीसविहत्तिओ च, सिया एदे च तेवीसविहत्तिया च ।
६३३१.'सिया एदे च' एवं भाणिदेधुवपदाणं गहणं, तेसिंबहुवयणणिद्देसो चेव जीवेसु बहुवेसु चेव धुवपदाणमवहाणादो। 'तेवीसविहतिओ च' एवं भणिदे एगवयणग्गहणं । कुदो ? सणमोहक्खवगस्स तेवीसविहत्तियस्स कयाइ एकस्सेव उवलंभादो । 'सिया तेवीसविहत्तिया च' एवं भणिदे हेडिमबहुवयणस्स गहणं। कुदो ? तेवीसविहत्तियाणं दसणमोहक्खवयाणं कयाइ अष्टोत्तरसयमेत्ताणमुवलंभादो। एवमुप्पण्णदोभंगसंदिही एसा २। पुणो एदेसिं करणकिरियाए आगमणे इच्छिजमाणे एगरूवं हविय दोहि स्वेहि गुणिदे धुवभंगेण विणा तेवीसविहत्तियस्स एयबहुवयणभंगा चेव आगच्छति । पुणो ध्रुवभंगेण सह आगमणमिच्छामो त्ति दोरूवेसु रूत्रं पक्खिविय गुणिदे धुवभंगेण सह तिण्णिभंगा आगच्छन्ति ३ । एदेण कारणेण भयाणजपदं तीहि सोहि गुणिजदि । कदाचित् ये अट्ठाईस आदि ध्रुवविभक्तिस्थानवाले अनेक जीव और तेईस विभक्तिस्थानवाला एक जीव होता है । कदाचित् ये अट्ठाईस आदि ध्रुवविभक्तिस्थानवाले अनेक जीव और तेईस विभक्तिस्थानवाले अनेक जीव होते हैं।
३३१. 'सिया एदे च' ऐसा कहनेपर ध्रुवपदोंका ग्रहण करना चाहिये । उन ध्रुवपदोका बहुवचनके द्वारा निर्देश किया है, क्योंकि ध्रुव पद बहुत जीवोंमें ही पाये जाते हैं। अर्थात् उपर्युक्त अट्ठाईस आदि ध्रुवस्थानोंके धारक सर्वदा अनेक जीव रहते हैं, अतः ध्रुवपदोंका निर्देश बहुवचनके द्वारा किया गया है। तेवीसविहत्तिओ च' इसप्रकार कहनेपर एक वचनका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि जो मिथ्यात्व नामक दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करके तेईस विभक्तिस्थानको प्राप्त हुआ है ऐसा जीव कदाचित् एक ही पाया जाता है। 'सिया तेवीसविहत्तिया च' ऐसा कहनेपर जो संदृष्टि पीछे दे आये हैं उसमें नीचेरखे हुए दो अंकसे सूचित होनेवाले बहुवचनका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि कदाचित् मिथ्यात्व नामक दर्शनमोहनीयका क्षय करके तेईस विभक्तिस्थानको प्राप्त हुए एक सौ आठ जीव पाये जाते हैं। इसप्रकार ध्रुवभंगके विना तेईस विभक्तिस्थानके निमित्तसे उत्पन्न हुए दो भंगोंकी संदृष्टि यह है २ । गणितकी विधिके अनुसार यदि इन दो भंगोंको लाना इष्ट हो तो एक अंकको स्थापित करके उसे दो अंकसे गुणितकर देनेपर तेईस विभक्तिस्थानके ध्रुवभंगके बिना एकवचन और बहुवचनके द्वारा कहे गये दो भंग ही आते हैं। और यदि ध्रुवभंगके साथ तेईस विभक्तिस्थानके भंग लाना इष्ट हो तो दोके अंकमें एकको जोड़ देनेपर ध्रुवभंगके साथ तीन भंग उत्पन्न होते हैं ३ । इसी कारणसे भजनीयपदको तीनसे गुणित करे ऐसा कहा है। उदाहरण-१४२२ तेईस विभक्तिस्थानके भंग ।
२+१=३, १४३=३ Qवभंगके साथ तेईस विभक्तिस्थानके भंग।
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