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गा० २२ ]
पयडिट्ठाणविहत्तीए भंगविचओ यतिण्णिभंगेसु दोहि रूवेहि गुणिदेसु तेवीसविहत्तियस्स तिहि भंगेहि विणा वावीसविहत्तियस्स एगदुसंजोगभंगा चेव आगच्छति । पुणो तेसिं णट्ठभंगाणं पि आगमणमिच्छामो चि पुग्विल्लगुणगारम्मि रूवं पक्खिविय गुणिर्दै वावीसविहतियस्स एगदुसंजोगभंगा तेवीसविहशिपस्स एगसंजोगभंगा च सव्वे एगवारेण आगच्छति । तेसि पमाणमेदं । एवं तेवीस-बावीसविहत्तियाणमेगदुसंजोगपरूवणा कदा ।
६३३४. संपहि तिगुणण्णोण्णगुणस्स णिण्णयत्थं पुणो विपरूवणा कीरदे। तं जहातेरसविहनियस्स एगसंजोगेण एग-बहुवयणाणि अस्सिदण दो भंगा उप्पजाते २ । पुणो तस्सेव दुसंजोगाला भण्णमाणे पुव्वं व तेरस-तेवीसविहत्तियाणं संजोएण चत्तारि ४ । तेरस-वावीसविहत्तियाणं संजोगेण वि चचारि चेव ४ । पुणो तेरसविहत्तियस्स तिसंजोगे भण्णमाणे तेवीस-बावीस-तेरसविहरियाणं हविदसंदिट्टीए एग-बहुवयणाणि अस्सिदण अक्खपरावत्ते कदे अह तिसंजोगभंगा उप्पजंति । संपहि तेरसविहात्तियस्स एगदोतिसंजोगाणं सव्वभंगसमासो अहारस १८। एदेसि करणकिरियाए आणयणं वुचदे । तं जहा-तेवीस-बावीसविहत्तियाणं णवभंगेसु दुगुणिदेसु वह विधि इसप्रकार है- तेईस विभक्तिस्थानसंबन्धी पूर्वोक्त तीन भङ्गोंको दोसे गुणित कर देनेपर तेईस विभक्तिस्थानके तीन भंगोंके बिना केवल बाईस विभक्तिस्थानके एक संयोगी और द्विसंयोगी भंग ही आते हैं। अब यदि इन बाईस विभक्तिस्थानके भंगोंके साथ तेईस विभक्तिस्थानके घटाए हुए भंगोंको लाना भी इष्ट है तो पूर्वोक्त दो संख्यारूप गुणकारमें एक संख्या मिला कर पूर्वोक्त गुण्यराशिसे गुणित करने पर बाईस विभक्तिस्थानके एक-द्विसंयोगी और तेईस विभक्तिस्थानके एक संयोगी सभी भंग एक साथ आ जाते हैं। उन सभी भङ्गोंका प्रमाण र होता है। इसप्रकार तेईस और बाईस विभक्तिस्थानके एक संयोगी और द्विसंयोगी भंगोंकी प्ररूपणा की।
६३३४. अब विरलित राशिके प्रत्येक एकको तिगुना करके परस्पर गुणा करनेकी विधिके निर्णय करनेके लिये और भी कहते हैं। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- एकवचन और बहुवचनका आश्रय लेकर तेरह विभक्तिस्थानके एकसंयोगी दो भंग उत्पन्न होते हैं। पुनः उसी तेरह विभक्तिस्थानके द्विसंयोगी भंगोंका कथन करनेपर पूर्ववत् तेरह और तेईस विभक्तिस्थानोंके संयोगसे चार भंग तथा तेरह और बाईस विभक्तिस्थानोंके संयोगसे भी चार भंग होते हैं। तथा तेरह विभक्तिस्थानके त्रिसंयोगी भंगोंका कथन करनेपर तेईस बाईस और तेरह विभक्तिस्थानोंकी जो संदृष्टि स्थापित है उसमें एकवचन और बहुवचनका आश्रय लेकर अक्षसंचार करनेपर त्रिसंयोगी भंग आठ उत्पन्न होते हैं। इसप्रकार तेरह विभक्तिस्थानके एकसंयोगी, द्विसंयोगी और त्रिसंयोगी सभी भंगोंका जोड़ अठारह होता है। अब इनकी गणितके अनुसार विधि कहते हैं। वह इसप्रकार है- तेईस और बाईस
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