Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयपवलासहिदे कसायपाहुडे । पयडिविहची २ विहत्तियाणमुक्कस्सकालो पुण मायासंजलणोदएण खवगसेढिं चडिदस्स अस्सकण्णकरणकालं किट्टीकरणकालं मायातिण्णिकिट्टीवेदयकालं च घेत्तूण होदि । कुदो पुरिसवेदमाओदएण जो खवगसेढिं चाडदो सो कोधोदएण चडिदस्स अस्सकण्णकरणकाले कोचं फद्दयसरूवण खवेदि । कोधोदएण चडिदस्स किट्टीकरणकाले माणं फद्दयसरूवण खवेदण दोण्हं विहत्तिओ होदि । तदो कोधकिट्टीवेदयकालम्मि मायालोभसंजलणाणमस्स (कण्ण) करणं करेदि । पुणो माणकिट्टीवेदयकालम्मि मायालोभसंजलणकिसीओ करेदि । तदो मायासंजलणाए अप्पणो तिण्णिकिट्टीओ पुष्वविधाणेण खविय एकिस्से विहत्तिओ होदि ति।
६ २७१. तिण्डं विहत्तियस्स जहण्णकालो अंतोमुहुतं । तं जहा-पुरिसवेदकोषसंजलणाणमुदएण जो खवगसेढिं चडदि सो कोधसंजलणतिण्णिकिट्टीओ खवेमाणो माणपढमकिट्टीअभंतरे दुसमयूणदोआवलियमेत्तकालं गंतूण कोघणवकबंधं खवेदि तिण्हं विहत्तिओ होदि । पुणो माणसंजलणतिण्णिकिडीओ खवेमाणो मायासंजलणपढमकिट्टीहोता है । दो प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट काल तो मायासंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके अश्वकर्णकरणके कालको मायासंज्वलनके कृष्टिकरणके कालको और मायासंज्वलनके तीन कृष्टियोंके वेदककालको मिला कर होता है। इसका कारण यह है कि जो जीव पुरुषवेद और मायाके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ा है वह, क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके क्रोधसंज्वलनके अश्वकर्णकरणका जो काल है उस कालमें क्रोधका स्पर्धकरूपसे क्षय करता है। क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके क्रोधसंज्वलनके कृष्टिकरणका जो काल है मायासंज्वलनके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव उस कालमें मानका स्पर्धकरूपसे क्षय करके दो प्रकृतिरूप स्थानका मालिक होता है। तदनन्तर क्रोधके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव जिस समय क्रोधकी तीन कृष्टियोंका वेदन करता है उस समय, मायाके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव माया और लोभसंज्वलनकी अश्वकर्णक्रियाको करता है। तदनन्तर क्रोधके उदयसे आपकश्रेणी पर चढ़ा हुआ जीव जिस समय मानकी तीन कृष्टियोंका वेदन करता है उस समय, मायाके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा हुआ जीव माया और लोभसंज्वलनकी तीन कृष्टियोंको करता है। तदनन्तर मायाके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़ा हुआ वह जीव मायासंज्वलन सबन्धी अपनी तीन कृष्टियोंका पूर्वोक्त विधि के अनुसार क्षय करके एक प्रकृतिकी सत्तावाला होता है।
६२७१.तीन प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है । वह इसप्रकार है-पुरुषवेद और क्रोधसंज्वलनके उदयसे जो क्षपकश्रेणीपर चढ़ता है वह क्रोधसंज्वलनकी तीन कृष्टियोंका क्षय करके मानसंज्वलनकी पहली कृष्टिके कालमेंसे दो समय कम दो आवली प्रमाण कालके जानेपर क्रोधसंज्वलनके नवक समयप्रबद्धका क्षय करता है और तब तीन प्रकृतिकस्थानका
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