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गा०२३]
पयडिहाणविहत्तीए कालो जहण्णुक्कस्सविसेसणं णिफलत्तमल्लियइ, विवक्खाविसयाणं दोण्हं णिप्फलतविरोहादो। - ६२७५. बारसविहत्तीए उक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तं । तं जहा-इत्थिवेदेण वा पुरिसवेदेण वा खवगसेटिं चडिय णqसयवेदं खविय जावित्थिवेदं ण खवेदि ताव बारसविहत्तियरस उकरसकालो अंतोमुहुत्तमेसो। जहण्णकालो बारसविहत्तीए किण्ण वुत्तो ? उवरि भणिस्समाणत्तादो
२७६. तेरसविहत्तियस्स जहष्णकालो अंतोमुहुत्तं । तं जहा-इत्थिवेदेण वा पुरिसवेदेण वा खवगसेटिं चडिय अहकसाएसु खविदेसु तेरसविहत्ती होदि । सा ताव होदि जाव णqसयवेदसव्वसंकमचरिमसमओ ति । एसो तेरहविहत्तीए जहण्णओ अंतोमुहुत्तकालो। संपहि उक्कस्सो वुच्चदे। तं जहा-णqसयवेदोदयेण खवगसेटिं चढिय अट्ठकसाएसु खविदेसु तेरसविहत्तीए आदी होदि । पुणो ताव तेरसविहत्ती चेव होण गच्छदि जावित्थिवेदखवणकाल चरिमसमओ त्ति । एसो तेरहविहत्तीए उकस्सकालो जहण्णकालादो इत्थिवेदक्खवणकालमत्तेण अब्भहियत्तादो। इन्हें निष्फल माननेमें विरोध आता है।
६२७५. बारह प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। वह इसप्रकार है-स्त्रीवेदके उदयके साथ या पुरुषवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ कर और नपुंसकवेदका क्षय करके क्षपकजीव जब तक स्त्रीवेदका क्षय नहीं करता है तब तक बारह प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है।
शंका-बारह प्रकृतिक स्थानका जघन्य काल क्यों नहीं कहा ? - समाधान-बारह प्रकृतिकस्थानका जघन्य काल आगे कहनेवाले हैं, अत: यहां नहीं कहा।
६२७६.तेरह प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है। वह इस प्रकार है--स्त्रीवेदके उदयके साथ या पुरुषवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ कर अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान माया तथा लोभ इन आठ कषायोंके क्षय कर देनेपर तेरह प्रकृतिक स्थान होता है। यह स्थान तब तक रहता है जब तक नपुंसकवेदके सर्वसंक्रमणका अन्तिम समय प्राप्त होता है । यह इस स्थानका अन्तर्मुहूर्त जघन्यकाल है ।
अब तेरह प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्ट काल कहते हैं। वह इस प्रकार है-नपुंसकवेदके उदयके साथ क्षपक श्रेणीपर चढ़ कर आठ कषायोंके क्षय कर देनेपर तेरह प्रकृतिक स्थानका प्रारम्भ होता है। पुनः यह स्थान तब तक अस्तित्व में रहता है जब तक स्त्रीवेदके 'क्षपणकालका अन्तिम समय प्राप्त होता है। यह तेरह प्रकृतिकस्थानका उत्कृष्ट काल अपने जघन्य कालसे स्त्रीवेदके क्षपण करनेका जितना काल है उतना अधिक है।
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