Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ पडिविहत्ती २ ६२७७. संपहि बारसविहत्तियस्स जहण्णकालविसेसपरूवणमुत्तरसुत्तं मणदि* णवरिबारसण्हं विहत्ती केवचिरंकालादो? जहणणेण एगसमओ।
६२७८.तं जहा-णसयवेदोदएण खवगसेढिं चढिय अटकसाएसुखविदेसु तेरसविहत्ती होदि । पुणो पच्छा गqसयवेदमप्पणो खवणपारंभपदेसे आढविय खवेमाणो णQसयवेदमप्पणो खवणकाले अक्खविय इत्थिवेदक्खवणामाढवेदि । पुणो इस्थिवेदेण सह णqसयवेदं खवेमाणो ताव गच्छदि जाव इत्थिवेदचिराणखवणकालतिचरिमसमओ ति तदो सवेदियदुचरिमसमए णqसयवेदपढमहिदीए दोहिदिमेत्ताए सेसाए इत्थिणदुसयवेदसव्वसंतकम्मम्मि पुरिसवेदम्मि संछद्धे से काले बारसविहत्तिओ होदि, णसयवेदउदयहिदीए तत्थ विणासाभावादो। विदियसमए एक्कारसविहत्ती होदि, फलं दाऊण पुम्विन्नाहिदीए अकम्मसरूवेण परिणमत्तादो। तेण जहण्णेण एगसमओ ति वुत्तं ।
२७७. अब बारह प्रकृतिक स्थानके जघन्य कालविशेषके कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* इतनी विशेषता है कि बारह प्रकृतिक स्थानका कितना काल है १ जघन्य काल एक समय है।
६२७८. बारह प्रकृतिक स्थानके जघन्य कालका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-नपुंसकवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़कर आठ कषायोंका क्षयकर देनेपर तेरह प्रकृतिक स्थान प्राप्त होता है। इसके पश्चात् नपुंसकवेदकी क्षपणाके प्रारम्भस्थानसे नपुंसकवेदका क्षय करता हुआ क्षपणकालके भीतर नपुंसकवेदका क्षय न करके स्त्रीवेदकी क्षपणाका प्रारम्भ करता है । अनन्तर स्त्रीवेदके साथ नपुंसकवेदका क्षय करता हुआ तब तक जाता है जब तक स्त्रीवेदके सत्तामें स्थित प्राचीन निषेकोंके क्षपणकालका त्रिचरम समय प्राप्त होता है। अनन्तर सवेद भागके द्विचरम समयमें नपुंसकवेदकी प्रथम स्थितिके दो समयमात्र शेष रहनेपर स्त्रीवेद और नपुंसकवेदसम्बन्धी सत्तामें स्थित समस्त निषेकोंके पुरुषवेदमें संक्रान्त हो जानेपर तदनन्तर नपुंसकवेदी बारह प्रकृतिक स्थानका स्वामी होता है, क्योंकि यहांपर नपुंसकवेदकी उदय स्थितिका विनाश नहीं हुआ है। तथा यही जीव दूसरे समयमें ग्यारह प्रकृतिक स्थानका अधिकारी होता है । क्योंकि पूर्वोक्त स्थिति अपना फल देकर अकर्मरूपसे परिणत हो जाती है। अत: बारह प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल एक समय कहा है।
विशेषार्थ-यदि कोई स्त्रीवेद या पुरुषवेदके उदयके साथ क्षपक श्रेणीपर चढ़ता है तो वह आठ कषायोंका क्षय करनेके बाद पहले नपुंसकवेदका क्षय करके अनन्तर अन्तर्मुहूर्तकालके द्वारा स्त्रीवेदका क्षय करता है । पर जो नपुंसकवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ता है वह आठ कषायोंके क्षय करनेके बाद पहले नपुंसकवेदके क्षयका प्रारम्भ करके बीच में ही स्त्रीवेदका क्षय करने लगता है और इस प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसक
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