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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [पयडिषिहत्ती २ ६३००.इंदियाणुवादेण एंइदिय० बादर० सुहुम० अठ्ठावीस-सत्तावीसविह केव० ? जह० एगसमओ उक्क० पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। छव्वीसवि० जह० एगसमओ, उक्क० सगहिदी। बादरपज अट्ठावीस-सत्तावीस-छन्चीसविह० केव० १ जह• एगसमओ, उक्क० संखेजाणि वस्ससहस्साणि । एवं विगलिंदिय-विगलिंदियपज । पचिंदिय-पंचिंदिऔर जो जीवनके अन्तमें अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना करते हैं उनके चौबीस विभक्तिस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है यहां हमने जिन विभक्तिस्थानोंके जघन्य या उत्कृष्ट कालके विषयमें विशेष कहना था उन्हींके कालका खुलासा किया है शेषका नहीं। अतः शेषका विचार कर लेना चाहिये ।
६३००. इन्द्रियमार्गणाकेअनुवादसे एकेन्द्रिय, तथा इनके बादर और सूक्ष्म जीवोंमें अट्ठाईस और सत्ताईस विभक्तिस्थानका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल पल्यके असंख्यातवें भाग है । छब्बीस विभक्तिस्थानका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है । एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त जीवोंमें अट्ठाईस, सत्ताईस
और छब्बीस विभक्तिस्थानका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल संख्यात हजार वर्ष हैं । इसीप्रकार विकलेन्द्रिय,विकलेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके कहना चाहिये।
विशेषार्थ-यद्यपि एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और सूक्ष्म एकेनि य जीवका निरन्तर उस पर्यायमें रहनेका काल पल्यके असंख्यातवें भागसे अधिक है, फिर भी मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें २८ और २७ विभक्तिस्थानोंका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है इससे अधिक नहीं । अतः एकेन्द्रियादि उक्त जीवोंके २८ और २७ विभक्तिस्थानोंका काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। किन्तु २६ विभक्तिस्थानके विषयमें यह बात नहीं है अतः उसका काल उक्त जीवोंके अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है । तथा बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष प्रमाण ही होता है अतः इनके २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानोंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष कहा है । तथा विकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रियपर्याप्त जीवोंके भी २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानोंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष जानना चाहिये। क्योंकि कोई एक जीव विकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रियपर्याप्त पर्यायमें निरन्तर संख्यात हजार वर्ष तक ही रहता है । इसके पश्चात् उसकी विवक्षित पर्याय बदल जाती है। बादर एकेन्द्रिय अप
प्ति, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त और विकलेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके २८, २७ और २६ विभक्तिस्थानोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होता है। जो सुगम होनेके कारण वीरसेनस्वामीने नहीं कहा है। विशेषार्थमें हमने जिन विभक्तिस्थानोंके जघन्य या उत्कृष्ट कालोंका खुलासा नहीं किया है इसका कारण यह है कि उनका खुलासा नरकगति आदिके सम्बन्धमें विशेषार्थ लिखते समय कर आये हैं।
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