Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे. [पयडिविहनी २ सवजहण्णेण पलिदोमस्स असंखेजदिमागमेत्तेण उव्वेलणकालेण सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणि उव्वेल्लिय छव्वीसावहत्तीए आदि कादण अद्धपोग्गलपरियह देसूर्ण परियहिदण अद्धपोग्गलपरियहे सव्व-जहण्णंतोमुहुत्तावसेसे उवसमसम्मत्तं घेतूण अहावीसविहत्तियभावमुवणमिय सिद्धिं गयम्मि छव्वीसविहत्तीए उवड्ढपोग्गलपरियट्टमेत्ते उक्कस्सकालुवलंभादो । केत्तिएणूणमद्धपोग्गलपरियट्टं ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण । सुत्तेण अवुत्तं ऊणतं कधं णव्वदे? ण, ऊणमद्धपोग्गलपरियह उवड्ढपोग्गलपरियहमिदि जयारलो काऊण णिदित्तादो। . * सत्तावीसविहत्ती केवचिरं कालादो ? जहण्णेण एगसमओ।
६२६१. कुदो ? अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छादिहिणा सम्मत्तुव्वेक्षणकाले अंतोमुहुत्तावसेसे तिण्णि वि करणाणि कादण अंतरकरणं करिय मिच्छत्तपढमष्टिदिदुचरिमसमए सम्मत्तचरिमफालिं सव्वसंकमेण मिच्छत्तम्मि पक्खित्ते पढमहिदिचरिमसमए सत्तावीस विहत्ती होदि । से काले उवसमसम्मत्तं घेत्तूण जेण अद्यावीसविहत्तिओ होदि तेण भाग प्रमाण उद्वेलन कालके द्वारा सम्यक्प्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करके
और इस प्रकार छब्बीस प्रकृतिक स्थानका प्रारम्भ करके देशोन अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण काल तक परिभ्रमण करके अर्धपुद्गल परिवर्तनरूप कालमें सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालके शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ और अट्ठाईस प्रकृतिक स्थानको प्राप्त होकर क्रमसे सिद्धिको प्राप्त हुआ उसके छब्बीस प्रकृतिक स्थानका देशोन अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट काल पाया जाता है।
शंका-यहाँ अर्धपुद्गल परिवर्तनको जो देशोन कहा है सो देशोनका प्रमाण क्या है ? समाधान-यहाँ देशोनका प्रमाण पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग इष्ट है।
शंका-सूत्रमें ऊनपनेका निर्देश तो नहीं किया है फिर यह कैसे जाना कि यहाँ देशोन अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण काल इष्ट है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि ऊन+अर्धपुद्गल परिवर्तनके स्थानमें प्राकृतके नियमानुसार णकारका लोप करके उपार्धपुद्गल परिवर्तन शब्दका निर्देश किया है।
* सत्ताईस प्रकृतिकस्थानका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है। ६ २११. शंका-सत्ताईस प्रकृतिक स्थानका जघन्य काल एक समय कैसे है ?
समाधान-जब अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला कोई मिथ्यादृष्टि जीव सम्यक्प्रकृतिके उद्वेलनाकालमें अन्तर्मुहुर्त शेष रहनेपर तीनों करणोंको करता है और अन्तरकरण करके मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके उपान्त्य समयमें सम्यक्प्रकृतिकी अन्तिम फालिको सर्वसंक्रमणके द्वारा मिथ्यात्वमें प्रक्षिप्त कर देता है तब वह मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके अन्तिम समयमें सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला होता है। पुनः अनन्तर समयमें उपशम सम्य
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