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मा० १२)
पडिहाणविहत्तीए कालो * तस्थ जो सादिलो सपज्जवसिदो जहण्णेण एगसमओ।
६२८६. कुदो ! सत्तावीससंतकम्मिएण मिच्छादिष्टिणा पलिदोरमस्स असंखेजदिमामयेत्तकालेण सम्मामिच्छत्तमुवेल्लमाणेण उव्वेलणकालम्मि अंतोमुहुत्ताक्सेसम्मि उक्समसम्मलाहिमुहभावमुक्गएण अंतरकरणं करिय मिच्छत्तपढमद्विदिम्मि सव्वगोषुच्छाओ नालिय उम्पराविददोगोबुच्छेण विदियष्टिदिम्मि छिदसम्मामिच्छत परिमफालिं समसंकमेण मिच्छत्तस्सुवरि पक्विविय मिच्छचपढमष्टिदिचरिमगोबुच्छेवेदयमाणेण एगसमय छव्वीसविहत्तियत्तमुवणमिय सदुवरिमसमए सम्म पडिकजिय अठ्ठावीससंतकम्मियत्ते समालंविदे छब्बीसबिहतीए एगसमयकालुबलंभादो।
* उकस्सेण उवर्ट पोग्गलपरिय।
६२६०. कुदो ? अणादियमिच्छादिडिम्मि तिष्णि वि करणाणि काऊण उवसमसम्मत्तं पडिवण्णम्मि अगंतसंसारं केतूण हविद-अद्धपोम्गलपरियम्मि पुणो मिच्छत्त मंतूण ___ * छब्बीस प्रकृतिक स्थानके इन तीनों मेदोंमें जो सादि-सान्त छब्बीस प्रकृतिक स्थान है उसका जघन्य काल एक समय है।
१२८६. शंका-सादि-सान्त छब्बीस प्रकृतिक स्थान का जघन्य काल एक समय कैसे है ?
समाधान-जिसके सम्यकप्रकृति के बिना सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्ता पाई जाती है, और जो पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्व कर्मकी उद्वेलना कर रहा है, पर उद्वेलनाके काल में अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर जो उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त करनेके सम्मुख हुआ है तथा अन्तरकरण करके मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिमें सर्व गोपुच्छोंको गला कर जिसके दो गोपुच्छ शेष रह गये हैं, तथा जो दूसरी स्थितिमें स्थित सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिको सर्व संक्रमणके द्वारा मिथ्यात्वमें प्रक्षिप्त करके मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके अन्तिम गोपुच्छका वेदन कर रहा है वह मिथ्यादृष्टि जीव एक समय तक छब्बीस प्रकृतिक स्थानको प्राप्त करके उसके अनन्तर समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त होकर अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला होता है, अतः इसके छब्बीस प्रकृतिक स्थानका जघन्यकाल एक समय पाया जाता है। ____ * सादि-सान्त छब्बीस प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन है।
३२९०.शंका-सादिसान्त छब्बीस प्रकृतिक स्थानका उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन कैसे है?
समाधान-जो अनादि मिथ्यादृष्टि जीव तीनों करणोंको करके उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ और इस प्रकार जिसने अनन्तसंसारको छेदकर संसारमें रहनेके कालको अर्थपुद्गल परिवर्तन प्रमाण किया । पुनः मिथ्यात्वको प्राप्त होकर सबसे जघन्य पल्योपमके असंख्यातवें
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